रविवार, 13 मई 2012

औली

औली यात्रा भाग.....२ (दो): औली विचरण एवं बद्रीनाथ दर्शन 

इस यात्रा वृत्तांत को शुरू से पढ़ने के लिए यहां पर क्लिक करें।  
समस्त मित्रों को मेरा प्रणाम....! आपने पिछले लेख औली यात्रा भाग.….१(एक): देवप्रयाग  में पढ़ा की फर्रुखाबाद, मुजफ्फरनगर होते हुए ११ मई २०१२ को ऋषिकेश में रात्रि विश्राम करके अगले दिन १२ मई को देवप्रयाग संगम में कुछ समय व्यतीत करने के पश्चात्  हिमालय की हसीन वादियों के ख़ूबसूरत नजारों को देखते हुए चढ़ती-उतरती नागिन जैसी लहराती पहाड़ी सड़को पर चलते-चलते हरे भरे पेड़ों, खेतों और पहाड़ की घाटियों तथा चोटियों पर बने मकानों को निहारते हुए पहले गंगा नदी फिर अलकनंदा नदी के किनारे-किनारे शाम को जोशीमठ तक पहुँच गए थे। अब आगे.…  

जोशीमठ 
जोशीमठ अलकनंदा नदी के तट पर  समुद्रतल से लगभग १८९० मीटर की ऊंचाई पर बसा एक पर्वतीय क़स्बा है। जोशीमठ चमोली जिले में आता है । जोशीमठ औली, हेमकुण्ड, फूलों की घाटी तथा बद्रीनाथ धाम जाने वाले यात्रियों का मुख्य पड़ाव स्थल भी है। कहा जाता है आठवीं सदी में आदि गुरु शंकराचार्य ने ज्ञान प्राप्त करने हेतु जोशीमठ में शहतूत के पेड़ के नीचे तपस्या की थी तथा ज्योतिर्मठ की स्थापना की थी। स्थानीय लोगों के अनुसार वही शहतूत का वृक्ष आज कल्पवृक्ष के नाम से प्रसिद्ध है। कल्पवृक्ष नरसिंह मंदिर परिसर में स्थित है। जोशीमठ में नरसिंह भगवान का अतिप्राचीन मंदिर है। सर्दियों में बद्रीनाथ मंदिर के कपाट बर्फवारी की वजह से बंद हो जाते है तो भगवान श्री विष्णु जी की डोली जोशीमठ के नरसिंह मंदिर में लायी जाती है और कपाट खुलने तक यहीं पूजा अर्चना की जाती है। पुरातन में जोशीमठ को ज्योतिर्मठ के नाम से जाना जाता था। 
-------------------------------------------------------
औली 
औली चमोली जिले का एक खूबसूरत पर्वतीय पर्यटक स्थल है जो जोशीमठ से १६ किमी(सड़क मार्ग) दूरी पर समुद्रतल से १०००० फ़ीट की ऊँचाई पर स्थित है। जोशीमठ से औली ता जाने हेतु गढ़वाल मण्डल विकास निगम ने ४२०० मीटर लम्बा रोपवे रूट (रज्जु मार्ग) बना रखा है। यह रज्जु मार्ग भारत वर्ष का सबसे लम्बा रज्जु मार्ग है। औली से नंदा देवी, कामत, त्रिशूल तथा अन्य बर्फ से लदीं चोटियाँ दिखाई देती हैं। सर्दियों में यहाँ खूब बर्फवारी होती है जिस कारण औली की ढलानों पर सर्दियों में स्की की जाती है। सर्दियों में यहाँ स्कीईंग के राष्ट्रीय स्तर के खेलों का  भी आयोजन होता है। जिन पर्यटकों को स्कीईंग नहीं आती है, उन्हें  गढ़वाल मण्डल विकास निगम की ओर से ५००० प्रति व्यक्ति की दर से माह जनवरी-फरवरी में सात दिन तक स्की सिखाने की ट्रेनिंग दी जाती है। सर्दियों में स्कीईंग के शौकीन देशी-विदेशी पर्यटक यहां स्कीईंग का लुत्फ़ उठाने काफी मात्रा में आते हैं। औली से ही तीन किमी दूरी पर स्थित गुरसौ बुग्याल है, जहां पैदल तथा खच्चर से जाया जाता है। 
---------------------------------------------------------
इस फोटो पर क्लिक कीजिए औली की खूबसूरती का एहसास हो जायेगा
अब यात्रा वृत्तांत पर चलते हैं.…
१२ मई २०१२ को हम लोग जोशीमठ में थे, सुबह जब आँख खुली तब कमरे से बाहर निकले तो ठण्डी सर्द हवा ने हमारा जोरदार स्वागत किया। सुबह-सुबह का मौसम काफी सर्दी का एहसास करा रहा था। होटल से ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों की चोटियों को स्पर्श करती सूरज की पहली-पहली किरणों को देखना बहुत अच्छा लग रहा था। सड़कों पर स्थानीय लोगों की चहलकदमी शुरू हो चुकी थी। हम लोग भी फटाफट नित्यकर्म से निवृत्त हुए और होटल के पास स्थित चाय की दुकान पर चले गए। चाय के होटल पर चाय नाश्ता करके वापस अपने होटल के कमरे में आकर अपने बैग लिए और होटल वाले का अवशेष भुगतान करके जोशीमठ से १६ किमी दूर स्थित औली की ओर चल दिए। रास्ता काफी पतला और चढ़ाईदार था लेकिन ठीक था। कुछ देर चलने के बाद हमारी कार विश्वप्रसिद्ध पर्वतीय पर्यटक स्थल औली पहुँच गयी। औली जाने के लिए जोशीमठ से ही रोपवे ट्राली की सुविधा है, परन्तु आज-कल यह बंद है। औली पहुँचने पर हिमालय का विराट स्वरूप मेरी नजरों के सामने था। चारों तरफ नीले आकाश के नीचे गगनचुंबी पर्वतों की चोटियां सफ़ेद चांदी जैसी बर्फ से आच्छादित होकर चमक रही हैं। छोटे-बड़े देवदारों के पेड़ों के जंगल से आती देवदार की खुशबू से परिपूर्ण मंद-मंद ठण्डी हवा के झोंके तन-मन को शीतलता प्रदान कर रहे थे। औली में चारों तरफ प्रकृति ने अपने सौंदर्य की वर्षा कर रक्खी थी। बर्फ के पिघलने के बाद औली के पहाड़ों की ढलानों पर उगी कोमल हरी भरी घास मखमली कालीन के तरह चारों तरफ फैली हुयी थी। हर तरफ का नजारा खूबसूरत और दिलकश था। प्रकृति की अनुपम छटा से ओतप्रोत औली का सौंदर्य मेरी कल्पनाओं से भी अधिक सुन्दर निकला। एक से बढ़कर एक नज़ारे मन को हर्षित कर रहे थे। औली की वादियों में हरी भरी घास पर चहलकदमी करते हुए हमे दो घण्टे से ज्यादा का समय व्यतीत हो चुका था, लेकिन यहां से जाने का मन नहीं हो रहा था लेकिन जाना तो था ही इसलिए थोड़ी देर और रुकने के बाद १२.३० बजे हम लोग यहां से चल दिए। 

इस चित्र पर क्लिक कीजिये 

औली में विराजमान राजपूत जी  

वाह...! क्या सुन्दरता है औली की  

नीला अम्बर, पहाडों की श्रंखला सबकुछ मन मोह लेता है....!     

बद्रीनाथ 
 आधा घंटे के सफर के बाद हम लोग वापस जोशीमठ आ गए। जोशीमठ आकर मुख्य सड़क पर दायीं ओर कार को मोड़ लिया गया। अब हमारा गंतव्य नर और नारायण पर्वतों की घाटी में स्थित भगवान श्री विष्णु जी के पवन धाम तथा भारत के चारों कोनों में अवस्थित चारों धामों में सबसे अधिक महत्व रखने वाला धाम श्री बद्रीनाथ धाम था जो यहां से लगभग ४० किमी दूर है। जोशीमठ से बद्रीनाथ का रास्ता काफी जोखिम भरा, दुर्गम, संकीर्ण व भूस्खलन वाला है। जिस कारण जोशीमठ से आगे बद्रीनाथ जाने  वाले वाहनों के लिए जोशीमठ में उत्तराखण्ड पुलिस ने "गेट व्यवस्था" बना रखी है। ये गेट अथवा फाटक दो-दो घण्टे के अन्तराल पर दिन कई बार खुलते और बंद होते है, जिनका समय भी निर्धारित है। जब उत्तराखण्ड की चारधाम यात्रा अपने पूरे चरम पर होती है तो गाड़ियों की भीड़ को नियन्त्रित करने के लिए जोशीमठ में "गेट व्यवस्था" काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। बद्रीनाथ के कपाट खुले हुए अभी तीन चार दिन ही हुए थे, वाहनों की भीड़ नहीं के बराबर थी शायद इसीलिए हमें फाटक बंद होने तथा खुलने की प्रक्रिया से नहीं गुजरना पड़ा और न ही किसी पुलिस वाले ने हमारी कार को रोका। हम लोग पाँचवे और अंतिम प्रयाग  विष्णु प्रयाग, गोविन्द घाट और हनुमानचट्टी हुए दुर्गम रास्तों से गुजर कर लगभग तीन बजे बद्रीनाथ पहुँच गए। 


पेड़ विहीन पहाड़ और उखड़ी सड़क

अलकनंदा नदी और दायीं ओर पीले आयत में दिखती दूर तक जाती दुर्गम-संकीर्ण सड़क

बद्रीनाथ में नाममात्र की भीड़ लग रही थी। इधर हम लोगो भूख भी तेज लग रही थी, सुबह सभी लोगों ने जोशीमठ में ही नाश्ता किया था, जो औली की उछलकूद में कब का पच चुका था।  सबने तय किया कि अभी भीड़ नहीं लग रही है हो सकता है सुबह हो जाय। सभी लोगों ने सुबह जोशीमठ में नहाया ही था इसलिए पहले कमरा लेकर हाथ-पैर धोकर मंदिर में दर्शन कर लिए जाएं उसके बाद खाना खाते हैं। बस स्टॉप के पास ही सड़क के किनारे बने होटल में कमरे लिए गए और जल्दी से हाथ-पैर धोकर मंदिर की ओर चल दिए। मंदिर की तरफ जाने वाली सड़क के बायीं ओर थोड़ी दूरी पर दिख रहे पहाड़ पर जमी बर्फ के नीचे से पानी का एक झरना तेज आवाज के साथ नीचे गिरता दिखाई पड़ा कुछ दूर और चलने पर बद्रीनाथ मंदिर के प्रथम दर्शन हुए। मंदिर फूलों से सुसज्जित होकर सुशोभित हो रहा था। मंदिर के नीचे पास में ही अलकनंदा नदी बह रही थी। दर्शनार्थियों की ज्यादा भीड़-भाड़ नहीं थी बड़े आराम से बद्रीनाथ जी के दर्शन प्राप्त किये।

झरने की सुमधुर आवाज वातावरण को संगीतमय बना रही है....! 

जय बद्रीनारायण की...! फूलों से सुसज्जित श्री बद्रीनाथ के पावन मंदिर के प्रथम दर्शन   

मंदिर के नीचे प्रवाहित होती अलकनंदा नदी 

श्री धाम बद्रीनाथ मंदिर के सामने राजपूत जी और मामा जी 
दर्शन करने  के बाद खाने के होटल में जाकर भरपेट भोजन किया। भोजन करने के बाद कार लेकर बद्रीनाथ से लगभग ०२ दो किमी आगे भारत की सीमा के अंतिम गांव "माणा" की  ओर चले गए। गांव के रास्ते पर सड़क के किनारे पर जमी हुयी बर्फ के ढ़ेर मिल रहे थे। माणा गांव से पहले कार को किनारे पर खड़ा कर दिया गया और आगे पैदल चल दिए। माणा गांव में भोटिया जनजाति के लोग निवास करते है, जिन्होंने गांव के बीच की सड़क के किनारे अपने हाथों से बनाये गए ऊनी वस्त्रों की छोटी-छोटी दुकानें खोल रखीं थी। गांव के बीच से निकलते ही अंत में एक बड़े से पत्थर का पुल "भीमपुल" आया। किवदंती है कि पाण्डवों के स्वर्गरोहिणी यात्रा पर जाते समय द्रोपदी अलकनंदा नदी को तेज बहाव के कारण पार नहीं कर पा रहीं थी तभी महाबली भीम ने एक विशालकाय पत्थर को तेज धारा के ऊपर रख दिया, जिस पर से होकर द्रोपदी ने अलकनंदा नदी को पार किया। भीम द्वारा रखे गए इसी विशालकाय पत्थर को आजकल भीमपुल के नाम से पुकारा जाता है। हम लोग भीमपुल के ऊपर से होकर अंतिम छोर पर बनी एक दुकान के पास पहुँच गए। दुकानदार ने अपनी दुकान पर "हिन्दुस्तान की अंतिम दुकान" लिखा हुआ एक बोर्ड लगा रखा था। मंदिर में दर्शन करने आये कई लोग यहां घूमफिर रहे थे। दुकान के दायीं ओर सफ़ेद दूधिया पानी की आवाज करती हुयी धारा बड़े-बड़े पत्थरों के बीच से निकल रही थी। यहां पर उपस्थित स्थानीय लोगों ने बताया कि यह सरस्वती नदी है जो मात्र यहीं पर दिखाई देती है और आगे अलकनंदा में विलीन हो जाती है। 
भीमपुल और उस पर खड़े “मामाजी एवं आकाश जी” 

माणा गाँव के आखिर में भारतीय सीमा की अंतिम दुकान तथा दायीं ओर पत्थरों के बीच से निकलती सरस्वती नदी

माण गाँव

माणा में कुछ देर रुकने के बाद हम लोग वापस बद्रीनाथ आ गए। शाम होने लगी थी सर्दी भी खूब बढ़ गयी थी। खाना चार बजे के आस-पास ही खाया था जिस कारण भूख नही लग रही थी। आज सुबह से काफी घूमने  फिरने  शरीर थकान महसूस करने लगा था इसलिए आराम करने के लिए अपने-अपने कमरों में चले गए और सोने का उपक्रम करने लगे।

अगले दिन १४ मई को सुबह जल्दी उठकर वापस चलने की तैयारी शुरू कर दी। बद्रीनाथ के आस-पास कई जगह पैदल ट्रैकिंग कर के जाया जा सकता है। ट्रैकर माणा गांव से ७ किमी की ट्रैकिंग करके काफी ऊँचाई से गिरती धारा "वासुधारा" देख कर एक दिन में बद्रीनाथ वापस आ जाते हैं और उससे आगे "सहस्रधारा" तक जाने के लिए टेन्ट और पोर्टर की आवश्यकता पड़ती है। सहस्रधारा अपने नाम के अनुरूप पर्वतों की उँचाईओं से गिरते सैकड़ों झरनों का समूह है। इन सबके अतिरिक्त भी यहाँ कई अनेकों आकर्षक स्थान हैं। हम लोगो के पास समय का आभाव था जिस कारण इन स्थानों पर जाना सम्भव नहीं था इसलिए तीन-चार दिन के समय के साथ पुनः भविष्य में बद्रीनाथ आकर इन स्थानों में भ्रमण करने का इरादा किया और इसी के साथ ८ बजे बद्रीनाथ से वापस चल दिए। रास्ते में चमोली, कर्णप्रयाग, ऋषीकेश तथा हरिद्वार होते हुए रात को ११ बजे मुजफ्फरनगर पहुँचे वहां पर मामा जी और आकाश जी को उतारा फिर तुरन्त ही फर्रुखाबाद के लिए प्रस्थान किया। बद्रीनाथ से लगभग २४ घण्टे का सफर करने के पश्चात् १५ मई की सुबह ७ बजे फर्रुखाबाद पहुँच कर यात्रा का सुखद समापन हुआ। 

मेरे मित्रों तथा प्रिय पाठकों……! अब हम अपने औली यात्रा की अन्तिम पोस्ट "औली यात्रा भाग.....२ (दो): औली विचरण एवं बद्रीनाथ दर्शन" के यात्रा वृत्तांत को यहीं समाप्त करते हैं तथा उम्मीद करते हैं आपको यह लेख पसंद आया होगा। आपके सुझावों, कमेन्ट्स का हमें इन्तजार रहेगा। अतः कृपया अपने सुझावों, कमेन्ट्स तथा टिप्पणियां हमें नीचे दिख रहे "टिप्पणी बॉक्स" में अवश्य भेजें। आगे भविष्य में किसी अन्य स्थान की यात्रा का अवसर अवश्य मिलेगा, जिसका यात्रा वृत्तांत "मुसफ़िरनामा"  में शीघ्र ही आपके समक्ष नए अनुभवों के साथ प्रकाशित किया जायेगा, तब तक के लिए नमस्कार मित्रों…। 

कुछ चित्र दर्शन और भी..........!  

राजपूत जी

औली में राजपूत जी, मामा जी एवं ड्राइवर लालू  

औली में लगा मिलिट्री कैम्प  

औली में देवदार का जंगल

औली में खड़ी अपनी इंडिगो कार

सामने दिख रहे देवदार के जंगल को पार करके गुरसो बुग्याल जाया जाता है 

जोशीमठ-बद्रीनाथ मार्ग पर खड़े आकाश जी

बद्रीनाथ मंदिर के साये में राजपूत जी

राजपूत जी

धूप से चाँदी की तरह चमकता बर्फ से ढका पहाड़ 

माना गाँव के अंत में हिंदुस्तान की आख़िरी दुकान 

माणा गाँव में आकाश जी, मामा जी और लालू ड्राइवर

माणा गाँव जाते समय रास्ते के किनारों पर जमी हुयी बर्फ पर बैठा लालू ड्राइवर  

बद्रीनाथ के रास्ते में खड़े हुए राजपूत जी साथ में मामा जी और लालू

बद्रीनाथ से वापसी पर अलकनंदा पर बने पुल के पास 

  
                                                                                                                                                         

इस यात्रा संस्मरण के लेखों की सूची 

१ - औली यात्रा भाग.....१ (एक): देवप्रयाग
२ - औली यात्रा भाग.....२ (दो): औली विचरण एवं बद्रीनाथ दर्शन 

                                                                                                                                                         

गुरुवार, 10 मई 2012

देवप्रयाग

औली यात्रा भाग…१(एक): देवप्रयाग

सभी साथियों को मेरा प्रणाम….... !  साथियों आज हम आपको हिमालयी राज्य उत्तराखण्ड में स्थित विश्वप्रसिद्ध पर्वतीय पर्यटक स्थल औली की यात्रा पर ले चलते हैं। इस यात्रा संस्मरणों के कुल दो भाग आपके अपने चिरपरिचित हिन्दी ब्लॉग "मुसाफिरनामा" के माध्यम से आपके सामने यात्रा वृत्तांत के रूप में रखने का प्रयास कर रहा हूँ। उपरोक्त यात्रा अपनी नई इंडिगो कार द्वारा १० मई २०१२ को शुरू की गयी, जो आपके सम्मुख प्रस्तुत है। उम्मीद करता हूँ आपको यह यात्रा वृत्तांत अवश्य पसंद आएगा। 

अब यात्रा वृत्तांत पर चलते हैं.…! 
अप्रैल महीने के आख़िरी दिन चल रहे थे, मैदानी क्षेत्रों में बसंत ऋतु अपनी अंतिम अंगड़ाई लेकर विदा हो चुकी थी, खेतों में खिले सरसों के फूल भी फली में बदल कर पक चुके थे, आम के पेड़ों पर छोटे-छोटे आम दिखाई पड़ने लगे थे कुछ ही दिनों बाद गर्मी तेज हवाओं के साथ अपने प्रचण्ड रूप से लोगों को रूबरू कराने वाली थी। परन्तु इसके ठीक दूसरी ओर "हिमालय के कई क्षेत्रों में अभी बसंत ऋतु का आगमन हो रहा होगा। पहाड़ों की ऊंचाईयों पर स्थित छोटे-बड़े ढलावदार मैदानों पर सर्दियों में पड़ी बर्फ़ पिघल चुकी होगी, बर्फ़ पिघलने के बाद उगी घास से मैदान हरे-भरे बुग्यालों में बदल चुके होंगे। चारों तरफ हरियाली का अथाह समुन्दर दिलकश एहसास के साथ जन-मानस के साथ हिल-मिल रहा होगा। पहाड़ों की कंदराओं से निकले झरनों से झरते पानी का मधुर संगीत, घाटियों में बहती नदियों का कल-कल करता पानी, सब-कुछ एक नई उमंग और तरंग के साथ मिलन कर रहा होगा। प्रकृति के ऐसे अनूठे रूप को पास से देखने को मेरा मन भी किसी पर्वतीय स्थल पर जाने को बार-बार प्रेरित कर रहा था। अंततः मैंने भी अपने मन की मानी और कुदरत के हसीन नजारों को अपनी नजरों में समाने के लिए हिमालय की यात्रा करने की तैयारी की और स्थान निश्चित किया "उत्तराखण्ड " राज्य में "ऋषिकेश-बद्रीनाथ मार्ग" पर स्थित जोशीमठ से १६ किमी दूरी पर स्थित विश्वप्रसिद्ध पर्वतीय स्थल “औली” । 

औली जाने के लिए दिन तारीख़ निश्चित करने की जद्दोजहद चल रही थी तभी मुजफ्फरनगर में रहने वाले एक नजदीकी रिश्तेदार के यहाँ से १० मई को प्रथम जन्मोत्सव में आयोजित प्रीतभोज में सम्मिलित होने का निमंत्रण प्राप्त हुआ, जिसमें भी मुझे जाना था, जिस कारण अपनी वास्तविक यात्रा ११ मई से शुरू होना निश्चित हुई। 

१० मई की सुबह ०७ बजे हम अकेले अपने ड्राइवर लालू को लेकर कार से मुजफ्फरनगर के लिए रवाना हो गए। फ़र्रुखाबाद से मुजफ्फरनगर ३८५ किमी की दूरी पर है, रास्ते में बरेली, रामपुर, मुरादाबाद, बिजनोर होते हुए हम दोपहर बाद ३.०० बजे मुजफ्फरनगर पहुंचे, शाम को आयोजित दावत में शामिल हुए। अगले दिन वहाँ से औली चलने की तैयारी शुरू की तो वहां पर उपस्थित नरेन्द्र जी “मामा जी” और आकाश जी भी साथ जाने के लिए तैयार हो गए।  

अतः ड्राइवर सहित कुल चार लोग शाम को ०४ बजे मुजफ्फरनगर से चल कर रुड़की होते हुए १०५ किमी दूर ऋषिकेश पहुँच गए। ऋषिकेश में लक्ष्मण झूला के पास स्थित एक होटल में दो कमरे किराये पर लेकर उनमें अपने-अपने बैग रखे तथा लक्ष्मण झूला पार करके कुछ तक दुगड्डा की ओर जाने वाली सड़क पर टहलने चले गए और वापसी में इसी सड़क पर स्थित छोटे से बाजार में बने ठीक-ठाक रेस्तरां में खाना खाकर अपने होटल में आकर सो गए। अगले दिन १२ मई को सो कर उठे तो गंगा नदी के बहते पानी की मधुर आवाज के साथ ऋषिकेश की सुहावनी सुबह हमारा इंतजार कर रही थी, कमरे से बाहर निकल कर देखा तो पाया कि वातावरण में सुकून देने वाली ख़ामोशी थी, सामने दिख रहीं शिवालिक की हरी-भरी पहाडियो की तलहटी में बहती गंगा जी की तेज धारा में श्रद्धालू स्नान कर रहे हैं। हम लोगों ने फटाफट होटल में ही नहाया और लक्ष्मण झूला पार करके बने रेस्तरां में नाश्ता करने निकल गए। लक्ष्मण झूला से गंगा नदी का विहंगम दृश्य दिखाई दे रहा था। कुछ रोमांच को पसंद करने वाले पर्यटक ऋषिकेश के आगे से गंगा नदी में रिवर राफ्टिंग करते हुए पुल के नीचे से आगे की ओर जा रहे थे। 
लक्ष्मण झूला, ऋषिकेश से दिखता गंगा जी का विहंगम दृश्य 

गंगा जी में रिवर राफ्टिंग करते पर्यटक 
नाश्ता करने के बाद हम लोगों ने कमरे में फैले अपने-अपने कपड़े बैगों में रख कर अपनी कार से राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या ५८ पर गंगा नदी के बायीं ओर चल दिए | रास्ते में ब्यासी, शिवपुरी होते हुए ऋषिकेश से ७० किमी दूर देवप्रयाग लगभग ११.३० बजे पहुँच गए। 

देवप्रयाग के बारे में जानकारी
देवप्रयाग राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या ५८ पर बसा एक सुन्दर पहाड़ी क़स्बा है, यह टिहरी गढ़वाल जिले में आता है। इसकी समुद्रतल से ऊँचाई १५०० फीट है। किवदंती के अनुसार कालान्तर में देवशर्मा नाम के तपस्वी ब्राम्हण ने यहां कई वर्षों तक कठोर तपस्या करके भगवान विष्णु को प्रसन्न किया था, जिस कारण इस स्थान का नाम देवप्रयाग पड़ा। देवप्रयाग उतराखण्ड के पंच प्रयागों (देवप्रयाग, रुद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, सोनप्रयाग एवं विष्णुप्रयाग) में सबसे अधिक महत्व रखता है। देवप्रयाग में अलकनंदा नदी एवं भागीरथी नदी का संगम होता है, दोनों नदियों के संगम होने के पश्चात् ही देवप्रयाग से आगे इन साझा नदियों को पहली बार गंगा नदी के नाम से जाना जाता है। प्राचीनकाल में उत्तराखण्ड की चारधाम यात्रा पैदल और खच्चरों के द्वारा की जाती थी, तब भी देवप्रयाग बद्रीनाथ मार्ग पर स्थित था। यात्री देवप्रयाग में रात्रि विश्राम कर संगम पर स्नान कर पुनः आगे की यात्रा पर निकलते थे। पुराने समय में देवप्रयाग को ब्रम्हपुरी, ब्रम्हतीर्थ तथा श्रीखण्ड नगर के नाम से पुकारे जाने का उल्लेख विभिन्न ग्रंथो में है। बताया जाता है की स्कन्द पुराण के केदारखण्ड में ग्यारह (११) अध्यायों में भी देवप्रयाग का उल्लेख मिलता है। देवप्रयाग में संगम स्थल जाने वाले रास्ते पर आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा आठवीं सदी में निर्मित कराया गया प्राचीन रघुनाथ जी मंदिर है, जो कत्यूरी शैली में है।  

kSराणिक कथाओँ में देवप्रयाग
देवप्रयाग से सम्बन्धित अनेकों पkSराणिक प्रचलित है, जिनसे देवप्रयाग का प्राचीनकाल से अस्तित्व में होना दर्शाता है, कुछ अतिप्रचलित कथाएं.............
  • कहा जाता है कि ब्रम्हांड की रचना करने से पहले ब्रम्हा जी ने यहां दस हजार वर्षों (१००००) तक भगवान विष्णु की आराधना कर सुदर्शन चक्र प्राप्त किया था, जिस कारण इसको ब्रम्हतीर्थ एवं सुदर्शन क्षेत्र कहा जाता है
  • माना जाता है कि कालान्तर में तपस्वी देवशर्मा ने यहां ११००० वर्षोँ तक कठोर तपस्या करके भगवान विष्णु को प्रसन्न किया था, जिन्होंने प्रकट होकर देवशर्मा से कहा कि वह त्रेता युग में देवप्रयाग आएंगे, जिसे उन्होंने भगवान राम बनकर पूरा किया त्रेता युग में विष्णु अवतार भगवान श्रीराम द्वारा श्रीलंका के राजा रावण तथा कुम्भकर्ण का वध किया था, जिस कारण लगे ब्रम्ह हत्या के दोष का निवारण करने हेतु भगवान राम अपनी पत्नी सीता एवं अनुज लक्ष्मण के साथ देवप्रयाग में अलकनंदा एवं भागीरथी के संगम पर तप करने आये थे जिसका उल्लेख केदारखण्ड में मिलता है

---------------------------------------------------

 देवप्रयाग पहुँच कर लालू ड्राइवर को कार के पास ही छोड़ कर सड़क के दायीं ओर नीचे की तरफ़ जाते हुए रास्ते पर उतर गए, यह ढलानदार रास्ता सीधे भागीरथी नदी पर लोहे की रस्सियों से बने झूलापुल तक ले गया, झूलापुल पार करते हुए हम लोग सीढियां उतर कर नीचे संगम तक पहुँच गए। भीड़-भाड़ नहीं थी, एक-दो लोग ही यहां पर स्नान कर रहे थे। भागीरथी का प्रवाह काफी तेज था जबकि अलकनंदा अपने शांत रूप से प्रवाहित हो रही थी। प्रकृति के बीच दोनों नदियों के संगम से उत्पन्न यहां का दृश्य अनूठा था। हम लोग कुछ देर दोनों नदियों के एक दूसरे में समाहित होकर बहने के सुन्दर दृश्यों को निहारते रहे, चूँकि हमें यहां से लगभग १८५ किमी दूर जोशीमठ पहुँचना था, रास्ता पूरा पहाड़ी होने के कारण ६ घंटे से ज्यादा का समय लगना स्वभाविक था।पहाड़ी रास्तों पर एक घंटे में लगभग २० से ३० किमी ही गाड़ी चल पाती है, इसलिए यहां ज्यादा वक्त देना उचित नहीं समझा। अतः अब यहां से चलने की बारी थी, ऊपर सड़क पर आकर नजदीक की दुकानों से रास्ते में खाने के लिए फल, बिस्किट, चिप्स एवं भुजिया के पैकट लेकर कार में रखे और एक किमी चलने के बाद दायीं तरफ़ बने भागीरथी नदी के पुल को पार करके राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या ५८ पर चल दिए।
अलकनंदा एवं भागीरथी नदी के संगम के बाद दिखती गंगा जी 

भागीरथी नदी का तेज प्रवाह 

अलकनंदा नदी हमारे दायीं ओर प्रवाहित हो रही थी, रास्ता मनोहारी था। पहाड़ो की घाटी में बहती अलकनंदा नदी, पहाड़ी ढलानों पर बने सीढ़ीदार खेत तथा उनके आस-पास बने मकान हिमालय की सुंदरता में चार चाँद लगा रहे थे।सर्पीली, लहराती सड़कों पर हमारी कार ख़ूबसूरत वादियों के बीच से होती जोशीमठ की ओर बढ़ रही थी। हिमालय के सोंदर्य को निहारते हुए हम लोग देवप्रयाग से श्रीनगर (33km), दूसरे प्रयाग  रुद्रप्रयाग (68km), गोचर(90km), तीसरे प्रयाग  कर्णप्रयाग(100km), चोथे प्रयाग  नंदप्रयाग(120km), चमोली(140km) होते हुए जोशीमठ शाम को लगभग ०७ बजे पहुँच गए।जोशीमठ में पहुँच कर सर्दी का भरपूर एहसास हुआ, इसलिए शाल ओढ़ ली गयी। अब यहां पहला काम रात में रुकने के लिए अपने बजट के अनुरूप कमरा ढूँढना था। कई होटलों में जाकर मोलभाव किया तब कहीं जाकर जोशीमठ शहर के अन्दर जाने वाली सड़क पर दो कमरे १२०० रूपये में लिए गए। कार को होटल के नजदीक सड़क पर पार्क कर कमरे में सामान ले गए फिर हाथ मुँह धोकर फ्रेश हुए और खाना खाने के लिए मुख्य सड़क के किनारे पर बने खाने के होटल पर जाकर खाना खाया  सर्दी बढ़ रही थी इसलिए भोजन करने के बाद अपने कमरे में आकर मोटी रजाई ओढ़ कर सो गए।

कुछ कुदरत की चित्रकारी मेरे माध्यम से

गंगा नदी में रिवर राफ्टिंग के लिए जाते पर्यटक 
देवप्रयाग संगम पर मामा जी एवं आकाश जी 

मामा जी के साथ राजपूत जी 

पहाड़ो को काट कर बनाये गए सीढ़ीदार खेत 

लहराती, बलखाती सड़क के साथ बहती अलकनंदा नदी 


घाटी में बहती अलकनंदा नदी, सीढ़ीदार खेत तथा सुंदर पर्वतीय नजारों के बीच में नीचे घाटी में दिखता एक झूलापुल 
अब देखो पास से झूलापुल और ऊपर की ओर दिखाई दे रही सड़क पर आती हुयी बस  

हरे-भरे पहाड़, सीढ़ीदार खेत और अलकनंदा नदी 

पहाड़ की चोटी पर दूर से दिखती बर्फ, उठते हुए बदल तथा गहरी संकरी घाटी में बहती अलकनंदा नदी  


मित्रों अब हम अपने औली यात्रा भाग.....१(एक): देवप्रयाग यात्रा वृत्तांत के लेख को यहीं आराम देते हैं और अगले लेख में आपको जोशीमठ, ख़ूबसूरत पर्वतीय स्थल औली तथा बद्रीनाथ तक ले जायेंगे तब तक के लिए नमस्कार मित्रों .....! 

                                                                                                                                                         

इस यात्रा संस्मरण के लेखों की सूची 

१ - औली यात्रा भाग.....१ (एक): देवप्रयाग
२ - औली यात्रा भाग.....२ (दो): औली विचरण एवं बद्रीनाथ दर्शन