रविवार, 8 जून 2014

मुनस्यारी यात्रा

मेरे सभी साथियों एवं पाठकगणों को मेरा प्रणाम ……! आपने मेरी पिछली पोस्ट "चोपता: एक अधूरी यात्रा" का लेख पढ़ा होगा, उक्त यात्रा जल्दबाजी में मेरे द्वारा की गयी थी। चोपता यात्रा के बाद मुझे फिर से उत्तराखण्ड राज्य के कुमाऊँ  मण्डल में स्थित पिथौरागढ़ जिले के नये उभरते हुए पर्वतीय पर्यटक स्थल मुनस्यारी जाने का अवसर मिला। चोपता यात्रा की तरह मुनस्यारी की यात्रा भी अचानक हुए घटनाक्रम का ही एक हिस्सा है, इसलिए इस यात्रा लेख में आपको छाया चित्रों की भरपूर कमी महसूस होगी। यह यात्रा मैंने जून, 2014 के प्रथम सप्ताह के समाप्त होने के अगले दिन से शुरू की। जिसके यात्रा संस्मरणों को अपने हिन्दी ब्लॉग "मुसाफिरनामा" के माध्यम से इस उम्मीद के साथ आपके सम्मुख रखने का प्रयास कर रहा हूँ कि आपको यह लेख जरूर पसंद आएगा ....…!

अब यात्रा वृत्तांत पर चलते हैं.......!    
मई के माह में मैदानी इलाकों में गर्मी अपनी चरम सीमा पर होती है। आमतौर पर तापमान 45 डिग्री सेल्सियस पार कर जाता है, गर्म हवाएँ घर से बाहर नहीं निकलने देती हैं, जून के शुरू होते ही मौसम उमस से भरा होने लगता है। ऐसे में पंखे, कूलर की हवा भी शरीर को राहत नही देती है। मात्र ए०सी० ही राहत प्रदान करती है और ऐसे मौसम में ए०सी० भी न चले तो हालत क्या होती है यह तो सभी लोग जानते हैं। फर्रुखाबाद एक "बी" श्रेणी का शहर है जहाँ बिजली की समस्या तो रहती ही है और जब ऐसी गर्मी में एक सप्ताह तक बिजली न मिले तो ऊपर वाला ही मालिक है। 7-8 जून की रात को अचानक शहर के छः ट्रांसफॉर्मर एक साथ फुँक गए। जिस कारण आधे शहर के साथ-साथ मेरे मोहल्ले को सप्लाई देने वाला ट्रांसफॉर्मर भी फुंक गया। बिजली की घोर समस्या से शहरवासी चंद दिनों तक दो-चार होने वाले थे। बिजली विभाग में सम्पर्क किया गया तो बताया गया की नए ट्रांसफॉर्मर आने में एक सप्ताह लगेगा केवल पानी की आपूर्ति के लिए दिन में दो घण्टे बिजली दूसरे फीडर से जोड़ कर दी जाएगी। भयानक उमस भरी गर्मी में किस तरह से सात दिन व्यतीत होंगे इसी सोच विचार में दिन के (11.00) ग्यारह बज गए। मेरे सभी घर वाले तो फर्रुखाबाद से 7 km दूर फतेहगढ़ में रह रहे रिश्तेदार के यहां चले गए। तभी मैंने भी गर्मी से निज़ात पाने के लिए किसी ठण्डे पहाड़ी स्थान पर जाने का निर्णय लिया। हमारे यहाँ से उत्तराखण्ड राज्य के पहाड़ ही सबसे नज़दीक हैं और उत्तराखण्ड में भी नैनीताल 210 km पर स्थित है। नैनीताल मेरा घूमा हुआ है और गर्मियों में यहाँ बहुत भीड़ होती है। मैं एकान्त पसंद इंसान हूँ इसलिए नैनीताल मेरी प्राथमिकता से हट गया। उत्तराखण्ड में पिथौरागढ़ जिले में शहर से 140 km दूरी पर मुनस्यारी के सन्दर्भ में कई बार पत्र-पत्रिकाओं में पढ़ा था कि यहाँ का मौसम गर्मियों में बड़ा ही सुहावना रहता है इसलिए मुनस्यारी चलना तय किया तथा अपने ड्राइवर प्रदीप को बुलाकर एक घण्टे के अंदर निकलने को कहा। 

कुछ मुनस्यारी के सन्दर्भ में  
मुनस्यारी पर्यटन के क्षेत्र में काफी तेजी से अपनी जगह बनाता हुआ पिथौरागढ़ जिले का सीमान्त ख़ूबसूरत छोटा सा पर्वतीय पर्यटक स्थल है जो उत्तराखण्ड राज्य के कुमाऊँ मण्डल में आता है। मुनस्यारी समुद्रतल से 2290 मीटर की ऊँचाई पर बसा है। मुनस्यारी में ब्लॉक तथा तहसील कार्यालय बने हुए हैं। मुनस्यारी में सर्दियों में खूब बर्फवारी होती है जिसके आकर्षण में पर्यटक यहाँ खिचे चले आते हैं और मुनस्यारी की वादियों में बर्फवारी का लुत्फ़ उठाते हैं। सर्दियों में काफी बर्फ गिरने तथा हिमाच्छादित शिखरों से घिरा होने के कारण इसे हिमनगरी का नाम भी दिया गया है। गर्मियों में यहाँ से पंचचूली, त्रिशूल तथा नंदा देवी पर्वतों की बर्फ से ढकी चोटियां दिखाई देती हैं। मुनस्यारी कई ट्रेकिंग रूटों का आधार स्थल भी है। जिसमें मिलम ग्लेशियर, रालम ग्लेशियर एवं खलिया टॉप के ट्रेकिंग रुट प्रसिद्ध हैं। 
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8 जून को दिन के 12.00 बजे मै प्रदीप को लेकर मुनस्यारी के लिए निकल दिया। फर्रुखाबाद से शाहजहाँपुर, पीलीभीत होते हुए रास्ते में रुकते-रुकाते शाम तक टनकपुर (230 km) पहुँचे। टनकपुर में 600 रूपये में एक कमरा लेकर होटल की पार्किंग में गाड़ी खड़ी करके टनकपुर की बाजार में टहलने निकल गए। टनकपुर शारदा नदी के तट पर बसा हुआ चम्पावत जिले का एक मैदानी क़स्बा है तथा सिद्धपीठ माँ पूर्णागिरि के दरबार में जाने का आधार स्थल है। बाजार में दूर-दराज से आये श्रद्धालुओं की भीड़ थी। कुछ श्रद्धालु जीप टैक्सी में बैठ के माता के दरबार में जाने के लिए टैक्सी चलने का इन्तजार कर रहे थे कुछ दर्शन करके अपने घर जाने की तैयारी में थे। टनकपुर बस सेवा तथा रेल सेवा से जुड़ा है तथा रात में रुकने के लिए कुमाऊँ मण्डल विकास निगम रेस्ट हाउस के साथ ही अन्य बहुत से होटल भी बजट के अंदर आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। काफी देर टनकपुर की बाजार में विचरण के बाद अपने होटल आये और खाना अपने कमरे में मंगा कर खाया और सो गए।  

अगले दिन ९ जून को सुबह सो कर उठे नहा कर कमरे में ही आलू के परांठे मंगा कर दही और आचार के साथ खाए और उसके बाद 8.30 बजे रूम चेकआउट कर दिया। टनकपुर में ही गाड़ी का डीजल टैंक फुल करा लिया गया। टनकपुर से अब हमे राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 125 पर चलना था। एन० एच० 125 पर कुछ दूर चलने पर एक सड़क दाहिनी ओर मुड़ जाती है जो सीधे माँ पूर्णागिरि के दरबार में श्रद्धालुओं को ले जाती है। थोड़ा और आगे बढ़ने पर पहाड़ी रास्ता शुरू होते ही कार की रफ़्तार कम हो गयी जिस कारण स्पीडोमीटर की सुई 25 से 45 के बीच में ही घूमने लगी। प्रदीप ने कार को काम ज्यादा रफ़्तार से पर्वतीय रास्तों के तीखे मोड़ों तथा चढ़ती-उतरती सड़क पर सावधानीपूर्वक चलाते हुए चम्पावत शहर के बाहर से निकालते हुए लगभग 11.30 बजे लोहाघाट (88km) पहुँचा दिया। लोहाघाट से रास्ते में खाने-पीने के लिए बिस्किट-चिप्स-भुजिया के पैकटों के साथ-साथ कुछ फल लेकर गाड़ी में रख लिए। लोहाघाट से मुनस्यारी जाने के लिए दो मार्ग हैं। पहला "गंगोलीहाट-कलुआखान-थल-तेजम" होता हुआ तथा दूसरा मार्ग "पिथौरागढ़-डीडीहाट-थल-तेजम" होता हुआ मुनस्यारी जाता है। हमने जानकारी के आभाव में दूसरे मार्ग "पिथौरागढ़-डीडीहाट-थल-तेजम" का चयन किया और पिथौरागढ़ की तरफ चल दिए। यदि पहले मार्ग से जाते तो "पातालभुवनेश्वर मंदिर"  के दर्शन भी हो जाते। लोहाघाट से पिथौरागढ़ 62km की दूरी पर है। पिथौरागढ़ सभी सुख सुविधाओं से सम्पन्न पहाड़ियों के बीच समतल मैदान में बसा पहाड़ी जिला है जिसकी समुद्रतल से ऊँचाई 1500 मीटर है। यहां एक हवाईपट्टी भी बनी हुयी है। पिथौरागढ़ की भीड़ भाड़ से बचने के लिए बाईपास से हवाईपट्टी के किनारे-किनारे होते हुए शहर की आबादी सीमा से बाहर निकल आये। पिथौरागढ़ में भी काफी गर्मी थी। यहां से निकलने के बाद रास्ते में पड़े डीडीहाट(203km), थल, नचानी होते हुए 5.00 के आस-पास तेजम(240km) पहुँच गए। तेजम में आकर कुछ गर्मी कम होने का एहसास होने लगा था।


तेजम का मस्त मौसम 

तेजम से मुनस्यारी 50 km दूर थी। चार-पांच किमी० और चलने के बाद मौसम में बदलाव आना शुरू हो गया चारों ओर की पहाड़ियों पर हरे-भरे पेड़ दिखने शुरू हो गए जिनसे आती ठण्डी-ठण्डी हवा के झोंके खुले शीशों के कारण गाड़ी में प्रवेश कर तन-मन को सुखद अनुभूति दे रहे थे। रास्ते में पड़े क्वीटी, डोर आदि गाँवों को पीछे छोड़ते हुए बिर्थी गाँव पहुँचे। बिर्थी गाँव में ही सड़क के बायीं ओर ऊपर दिख रही पहाड़ी पर कई मीटर ऊँचाई से पानी का एक झरना गिरता हुआ दिखाई दिया। बिर्थी गाँव में होने के कारण यही झरना "बिर्थी फॉल" के नाम से प्रसिद्ध है। शाम होने में ज्यादा वक्त नहीं था इसलिए समय की कमी को ध्यान में रखते हुए "बिर्थी फॉल" के बिल्कुल करीब तक नहीं गए और दूर से ही देख कर मुनस्यारी की ओर चल दिए।


मुनस्यारी जाते समय रास्ते में कुछ देर बिर्थी झरने के पास रुके 

बिर्थी गाँव से 15 km चलने के बाद आये रत्तापानी गाँव के आगे से तो सड़क तीखी चढ़ाईयुक्त हो गयी थी जिस कारण ड्राइवर प्रदीप को बार-बार गाड़ी में प्रथम गेयर का उपयोग करना पड़ रहा था। रास्ते में पड़े कालीमुनि गाँव तक चढ़ाई मिलती रही, जिसका कारण कालीमुनि गाँव का समुद्रतल से 9500 फ़ीट ऊँचाई पर बसा होना था।  कालीमुनि गांव से निकलने के बाद हमारा अन्तिम पड़ाव मुनस्यारी आ गया जहाँ प्रदीप ने गाड़ी की गति को विराम दिया। सुहावने मौसम के बीच मुनस्यारी में दिन का उजाला शाम के पहलू में सिमट कर रात्रि के आगोश में समाने के लिए उत्सुक लग रहा था। हम लोग भी सुबह टनकपुर से 290 km का पहाड़ी सफर तय करके आ रहे थे जिस कारण शरीर में थकावट महसूस हो रही थी इसलिए रात्रि होने से पहले ही रात्रिविश्राम के लिए अपने बजट के अनुरूप होटल भी ढूँढना था। सड़क के पास ही एक होटल में प्रदीप को किराया पता करने भेजा तो वह होटल महंगा लगा। थोड़ा आगे बढ़ने पर कुमाऊँ मण्डल विकास निगम का पर्यटक आवास गृह दिखा उसमें जाकर केयरटेकर से बात की तो उसने 1500 रूपये प्रतिदिन की दर से किराया बताया, जो भी हमे अधिक लगा।

कुमाऊँ मण्डल विकास निगम पर्यटक आवास गृह के ठीक सामने तिराहे पर सड़क के दाहिनी ओर "बिलजू इन" नाम का एक होटल और था, जो बाहर से दिखने में साफ़-सुथरा लग रहा था। होटल के मैनेजर से कमरा दिखाने को कहा तो उसने आखिरी तीसरी मंजिल पर कमरा दिखाया। कमरा साफ़-स्वच्छ बिस्तर के साथ रजाइयों और अटैच बाथरूम में गीजर से युक्त तथा वर्ष भर सुहावने मौसम के कारण पंखा विहीन था। मोलभाव करके 1000 रूपये प्रतिदिन की दर से कमरा ले लिया और गाड़ी को होटल के पीछे बनी पार्किंग में खड़ा करा दिया। होटल में नीचे ही व्यवस्थित रेस्तरां भी बना था, जहाँ भोजन की समुचित व्यवस्था के साथ रूम सर्विस की भी सुविधा थी। होटल के कमरे में अपने बैग रखे तथा बाथरूम में जाकर हाथ-मुँह धोकर फ्रेश हुए। शाम के आठ बजने में 15 मिनट बाकी थे होटल के सामने नीचे की तरफ मुनस्यारी की छोटी सी बाजार दिख रही थी। शॉर्टकट से बाजार जाने के लिए के०एम०वी०एन० गेस्ट हाउस तथा मकानों के बीच से होकर एक ढलानदार पगडण्डी जा रही थी, जिस पर से उतर कर मुनस्यारी की बाजार में टहलने चले गए। बाजार के बीच में चौड़ी सी जगह में एक टैक्सी स्टैण्ड था, जिसके आस-पास बनी दुकानों में मौजूद दुकानदार अपनी-अपनी दुकानें बंद करने की तैयारी में लगे थे। चाय की दुकानों पर कुछ स्थानीय टैक्सी ड्राइवर चाय पीते हुए गपशप कर रहे थे तथा कुछ लोग पूरे दिन की दिनचर्या को एक-दूसरे को बता रहे थे। हम लोगों ने भी वहीँ एक होटल में चाय पी और वापस होटल में आ गए तथा रूम सर्विस को इंटरकॉम फोन से सादा भोजन कमरे में ही उपलब्ध कराने का ऑर्डर दे दिया। आधा घण्टे में होटलकर्मी खाना लेकर आ गया। खाना खाने के कुछ देर बाद अगली सुबह के इन्तजार में हम लोग सो गए।


हिमनगरी मुनस्यारी में सड़क के दायीं तरफ दिखता होटल "बिलजू इन"

10  जून 2014 की सुबह सो कर उठे तो कमरे से बाहर निकलकर आँगननुमा बॉलकनी में आये। मुनस्यारी में रात में बारिश हुयी थी, जिसके कारण पहाड़ों की भीगी हुयी मिट्टी की सोंधी-सोंधी खुशबू से भरी मदमस्त हवा के झोंको ने हमारा दिल खोल कर स्वागत किया। रात में हुयी वर्षा के कारण मुनस्यारी का तापमान काफी गिर गया था। बादलों के कारण आसमान में धुंध सी फैली हुयी थी, जिसकी वजह से मुनस्यारी के चारों ओर मौजूद पर्वत श्रृंखलाएँ धुंधली-धुंधली नजर आ रहीं थीं। साफ़ मौसम में मुनस्यारी पंचचूली  पर्वतमालाओं की पाँचों चोटियों के मंत्रमुग्ध करने वाले दृश्यों के लिए विख्यात है लेकिन आज धुंध की वजह से बर्फ से लकदक पंचचूली  पर्वतमालाएं नहीं दिखाई पड़ रहीं थी। मुनस्यारी से दिखने वाले अलौकिक, अविस्मरणीय एवं मन को प्रफुल्लित करने वाले जिन दृश्यों के आकर्षण से वशीभूत होकर फर्रुखाबाद से 515 km का सफर तय करके आये उसे पहाड़ों पर छायी धुंध की चादर ने अपने अंदर छिपा रखा था, जिससे मन को निराशा तो अवश्य हुयी परन्तु मैदानी गर्मी से निजात मिलने के कारण संतोष भी मिला। बॉलकनी में कुछ देर खड़े रहने के पश्चात् बाथरूम में जाकर नहाये फिर रेस्तरां में जाकर नाश्ता किया और 10.00 बजे के करीब मुनस्यारी बाजार से होते हुए लगभग 2 km की दूरी पर स्थित माँ नंदा देवी मन्दिर पैदल टहलते हुए निकल गए।

नंदा देवी मन्दिर के रास्ते में खड़े राजपूत जी 



नंदा देवी मंदिर में जाने के लिए प्रवेश द्वार से ही सीढ़ियाँ बनी हुयीं थीं, जिन पर चढ़ते हुए मन्दिर परिसर में पहुँच गए। परिसर के बीच में ही माँ नंदा देवी का छोटा सा मन्दिर बना हुआ दिखा, जिसमें ताला पड़ा था।इसलिए माँ नंदा देवी के बाहर से ही दर्शन किये। मन्दिर परिसर को ही छोटे से उपवन के रूप में मन्दिर कमेटी द्वारा विकसित कर पर्यटकों तथा श्रद्धालुओं के बैठने के लिए तीन-चार सीमेंटिड हट्स बना रखे थे। आस-पास की पहाड़ियों को देखने के लिए मन्दिर परिसर में ही लोहे का एक वॉच टावर बना था।यहां मेरे और प्रदीप के अलावा दक्षिण भारतीय तीन पर्यटक भी विचरण कर रहे थे। हम लोगों ने तीन-चार घण्टे यहाँ व्यतीत किये और वापस अपने होटल की ओर चले आये। मुनस्यारी से 10 km दूर 11500 फ़ीट की ऊँचाई पर खलिया टॉप ट्रेकिंग करके जाया जाता है। खलिया टॉप से पंचचूली, त्रिशूल तथा नंदा देवी पर्वतों की हिमाच्छादित चोटियों के मनोहारी दर्शन होते है। धुंध के साम्राज्य में इन शिखरों को नहीं देखा जा सकता था इसलिए आज खलिया टॉप जाना निरस्त कर दिया। होटल में आकर खाना खाया और बॉलकनी में कुर्सी लाकर रखीं जिन पर बैठ कर धुंध के उस पार के पर्वतों को देखने की चेष्टा करते रहे। मुझे तो हिमनगरी मुनस्यारी में कहीं भी किसी स्थान से हिम नहीं दिखी और न ही कोई पर्यटकों की चहलकदमी दिखी। हमारे होटल में भी दो-तीन दिल्लीवासी परिवार रुके हुए थे, जो अपने इष्टमित्रों को गर्मियों में मुनस्यारी न आने की सलाह दे रहे थे। शाम होते-होते मुनस्यारी के क्षितिज को बादलों ने ढँक लिया। हम लोग एक बार फिर नीचे बाजार में चाय पीने चले गए, चाय पी ही रहे थे तभी बूंदा-बांदी शुरू हो गयी, होटल तक आते-आते तेज बारिश होने लगी, जिस कारण भीग गए। भूख लग नहीं रही थी इसलिए शाम को खाना भी नहीं खाया। जैसे-जैसे रात गहराती चली गयी आसमानी बिजली की कड़कड़ाहट के साथ बारिश का वेग भी बढ़ता चला गया। बाहर घनघोर वर्षा के कारण ठण्ड भी बढ़ गयी थी। हम लोग भी बिस्तर पर रखी रजाईयों को ओढ़ कर सो गए।


माँ नंदा देवी मन्दिर का प्रवेश द्वार 

वॉच टावर से दिखता माँ नंदा देवी का मन्दिर तथा मन्दिर परिसर में विचरण करते राजपूत जी 

वॉच टावर से दिखता धुंध में लिपटा मुनस्यारी क़स्बा 
बिर्थी  फॉल 
11 जून की सुबह सो कर उठे तो कल की तरह आज  भी आसमान में धुंध छायी हुयी थी, जिस कारण खलिया टॉप जाना बेकार ही होता इसलिए यहां से वापस अल्मोड़ा होते हुए चलने का निर्णय लिया। दैनिक दिनचर्या से निवृत्त होकर रेस्तरां में जाकर नाश्ता किया। होटल का अवशेष भुगतान कर 10.00 बजे मुनस्यारी को अलविदा कहा। रास्ते में कालीमुनि, रत्तापानी होते हुए 35km दूर "बिर्थी फॉल" आकर गाड़ी को सड़क के किनारे खड़ा किया और झरने को नजदीक से देखने के लिए पहाड़ी पर चढ़ लिए। बिर्थी झरना 126 मीटर की ऊंचाई से गिरता हुआ बड़ा मनमोहक लग रहा था। कोई भी पर्यटक यहाँ पर नहीं था। चारों तरफ असीम शांति के सुखद वातावरण में पानी के झरते झरने का संगीत सुनाई पड़ रहा था। बिर्थी फॉल से नीचे की तरफ छोटा सा बिर्थी गांव दिखाई पड़ रहा था। यहाँ पर एक घण्टे के आस-पास रुक कर फोटो खींचते रहे फिर वापस आकर गाड़ी में बैठ कर तेजम की ओर चल दिए। 


बिर्थी झरने के लिए जाते समय 

बिर्थी झरने के पास खड़े राजपूत जी 

"बिर्थी फॉल"  के पास से नीचे की ओर दिखता बिर्थी गाँव 

मुनस्यारी से अल्मोड़ा जाने के लिए भी दो मार्ग है पहला मार्ग "तेजम-शामा-कपकोट-बागेश्वर" होता हुआ अल्मोड़ा पहुँचता है तथा दूसरा मार्ग "तेजम-नचानी-थल-कलुआखान-सेरघाट" होते हुए अल्मोड़ा जाता है। यहां पर भी फिर से हम लोगों ने गलत मार्ग  "तेजम-शामा-कपकोट-बागेश्वर" का चयन कर लिया। दूसरे मार्ग से जाते तो रास्ते में "जागेश्वर धाम " के मन्दिर समूहों के दर्शन भी हो जाते। पहले वाले मार्ग पर जाने के लिए तेजम से 2 km पहले दाहिने तरफ जा रहे रास्ते पर मुड़ गए। यह रास्ता 5 km तक भूस्खलन के कारण रामगंगा नदी के पुल तक क्षतिग्रस्त था। पुल के बाद रास्ता सही मिलना शुरू को गया। इस मार्ग पर वाहनों की आवाजाही बहुत कम होती प्रतीत हुयी मात्र तीन पिकअप गाड़ियां ही शामा तक आते हुए मिलीं। इन पहाड़ी रास्तों पर रुकते-रुकाते हुए लहराती बलखाती सुनसान सडकों पर प्रदीप बड़ी कुशलता से गाड़ी को चला रहा था। रात के 8.00 बजे शामा (76km), कपकोट(108 km), बागेश्वर(129km) से होते हुए अल्मोड़ा (206 km) पहुँच गए। अल्मोड़ा में रात्रि विश्राम के लिए कमरा लिया और पास की बाजार में बने होटल में जाकर खाना खाया तथा वापस अपने कमरे में आकर सो गए। अगले दिन 12 जून को जल्दी से नित्यकर्म से निवृत्त होकर अल्मोड़ा से फर्रुखाबाद के लिए चल दिए। अल्मोड़ा से रास्ते में भुवाली, भीमताल, काठगोदाम, बरेली होते हुए शाम को 7.00 बजे फर्रुखाबाद(310km) आकर मुनस्यारी यात्रा का समापन किया।


तेजम के आगे से दिखती घाटी में बहती रामगंगा नदी 

रामगंगा नदी, प्रदीप और अपना वाहन 

रामगंगा नदी और राजपूत जी 

मेरे मित्रों तथा साथियों…! अब हम अपनी "मुनस्यारी यात्रा"  की एक मात्र पोस्ट के यात्रा वृत्तांत को यहीं पूर्ण विराम देते हैं तथा उम्मीद करते हैं आपको यह लेख पसंद आया होगा। आपके सुझावों, कमेन्ट्स का हमें इन्तजार रहेगा। अतः कृपया अपने सुझावों, कमेन्ट्स तथा टिप्पणियां हमें नीचे दिख रहे "टिप्पणी बॉक्स" के माध्यम से अवश्य भेजें। आगे भविष्य में किसी अन्य नए स्थान की यात्रा मेरे द्वारा अतिशीघ्र की जाएगी, जिसका यात्रा वृत्तांत "मुसफ़िरनामा"  में शीघ्र ही आपके समक्ष नए अनुभवों के साथ प्रकाशित किया जायेगा, तब तक के लिए नमस्कार मित्रों…। 

कुछ छायांकन और भी …


वाच टावर पर चढ़ा प्रदीप 

मन्दिर परिसर में प्रदीप 

राजपूत जी 

"बिर्थी फाल" के पास प्रदीप  

तेजम-शामा मार्ग पर खड़ी अपनी कार