1- यमुनोत्री-गंगोत्री यात्रा भाग- 1 ( लक्ष्मण झूला )
लक्ष्मण झूला लोहे की रस्सियों पर बना हुआ पुल है जिसकी लम्बाई 450 फुट है। लक्ष्मण झूला के बीच पर पहुँचने पर पुल हिलने का अहसास हो रहा था। पुल क्रास करके हम लोग बायीं ओर गंगा जी के किनारे-किनारे बनी सड़क पर टहलने के लिए चल दिए। कुछ दूर चलने के पश्चात यह सड़क दुगड्डा की ओर जाने वाली सड़क से मिल जाती है और इसी सड़क पर आगे चलने पर एक सड़क नीलकण्ठ महादेव के लिए मुड़ जाती है। हम लोग लगभग दो किमी चल कर बायीं ओर किनारे बह रही पतित पावनी गंगा जी के तट की ओर उतर गए, नरम रेत और छोटे-बड़े पत्थरों पर से होते हुए गंगा जी की निर्मल धारा के नजदीक गए और अठखेलियां करती हुयी लहरों में पैर डाल कर बैठ गए। गंगा जी के ठण्डे पानी से मिश्रित शीतल हवा के झोंके तन-मन को असीम आनन्द प्राप्त करा रहे थे तथा हृदय में रामत्व का उदय भी करा रहे थे। लगभग आधा घण्टा यहाँ रुकने के बाद हम लोग अपनी धर्मशाला में चले आये। मैंने तो अपने कमरे में ही स्नान किया परन्तु पाण्डेय जी आदि साथी गणों ने गंगा स्नान करने के लिए धर्मशाला के सामने से बने रास्ते से नीचे चले गए। स्नानोपरांत नाश्ता करने धर्मशाला के पीछे से ऊपर बनी चौड़ी सी पार्किंग में आये। पार्किंग स्थल के चारों तरफ बहुत से खाने के होटल एवं रेस्तरां बने हुए थे तथा कई चार पहिया ठिलिया पर चाय, बिस्किट वाले चाय बेंच रहे थे। एक चाय वाले के पास छोले-कुल्छे भी बन रहे थे। सब लोगों ने चाय के छोले-कुल्छे का जम कर नाश्ता किया।
नाश्ता करते-करते सुबह के लगभग 9. 00 बज चुके थे। चूँकि हम लोगों का अगला पड़ाव यमुनोत्री धाम था, जो ऋषिकेश से 215 किमी दूरी पर था।इसलिए जल्दी से धर्मशाला पहुँच कर कमरों में बिखरा सामान समेट कर बैगों में रखा और अपनी कार देहरादून-मंसूरी-चकराता मार्ग पर दौड़ा दी।
पौराणिक कथाओं में लक्ष्मण झूला -
किवदन्ती के अनुसार भगवान श्रीराम के अनुज भ्राता श्री लक्ष्मण जी ने गंगा जी के दूसरी तरफ जाने के लिए इसी स्थान पर जूट की रस्सियों से झूला पुल बना कर गंगा जी को पार किया था, लक्ष्मण जी द्वारा गंगा जी पर पुल बनाये जाने के कारण ही इसे लक्ष्मण झूला पुल कहा जाता है। लक्ष्मण झूला के पास में कई अन्य दर्शनीय मन्दिर बने हुए है।
मेरे मित्रों और साथियों ...... !! अब हम अपनी यमुनोत्री-गंगोत्री यात्रा भाग - 1 ( लक्ष्मण झूला) के यात्रा वृत्तान्त को यहीं विराम देते है तथा आशा करता हूँ कि आपको यह लेख पसन्द आया होगा। आपके सुझावों तथा सुन्दर से कमेन्ट्स का मुझे बेसब्री से इन्तजार रहेगा। अतः कृपया अपने सुझावों, कमेन्ट्स तथा टिप्पणियाँ मुझे नीचे दिख रहे "टिप्पणी बॉक्स" के माध्यम से अवश्य भेंजे। यमुनोत्री-गंगोत्री यात्रा भाग- 2 (यमुनोत्री ) का प्रकाशन आपके चिरपरिचित हिन्दी ब्लॉग "मुसाफ़िरनामा"में अतिशीघ्र प्रकाशित होगा। तब तक के लिए नमस्कार..........!!!
अगले भाग में जारी-------
इस यात्रा संस्मरण लेखों की सूची
1- यमुनोत्री-गंगोत्री यात्रा भाग- 1 (लक्ष्मण झूला )
2- यमुनोत्री-गंगोत्री यात्रा भाग - 2 (यमुनोत्री धाम दर्शन )
3- यमुनोत्री-गंगोत्री यात्रा भाग - 3 (गंगोत्री धाम दर्शन )
मेरे सभी साथियों और पाठकों को मेरा प्रणाम -------- !!! आप लोगों ने मेरी पिछली पोस्ट मुनस्यारी का यात्रा अवश्य पढ़ा होगा। उत्तराखण्ड राज्य में कुमाऊँ मण्डल के पिथौरागढ़ जिले के सीमान्त क्षेत्र में अवस्थित मुनस्यारी पर्वतीय स्थल की दुर्गम यात्रा जून 2015 की भीषण उमस भरी गर्मी से कुछ दिनों तक निजात पाने तथा पंचाचूली पर्वतों की चोटियों के विहंगम दृश्यों को नजदीक से देखने के लिए अचानक ही प्रस्तावित की गयी थी। मुनस्यारी यात्रा के एक साल बाद फिर से जून 2015 में उत्तराखण्ड राज्य में स्थित यमुना नदी के उद्गम स्थान यमुनोत्री धाम तथा गंगा नदी के उद्गम स्थान गंगोत्री धाम में जाकर यमुना माँ तथा गंगा माँ के पवित्र मन्दिरों में दर्शन करने की इच्छा मन में जाग्रत हुयी। उक्त यात्रा 5 जून 2015 को शुरू की गयी जिसके यात्रा संस्मरण को अपने हिन्दी ब्लॉग मुसाफिरनामा के माध्यम से आपके सम्मुख इस उम्मीद के साथ प्रस्तुत कर रहा हूँ कि आपको यह लेख अवश्य पसन्द आयेगा------------!
अब यात्रा की ओर चला जाये -------------!!!
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अब यात्रा की ओर चला जाये -------------!!!
मई का माह शुरू हो गया था गर्मी भी अपना प्रचण्ड रूप दिखाने के लिए मचलने लगी थी। इधर मुझे भी किसी पहाड़ी क्षेत्र पर गए हुए लगभग एक वर्ष का समय हो गया था। मई माह में हिन्दी पञ्चांग के अनुसार बैसाख का महीना चल रहा होता है। बैसाख माह की अक्षय तृतीया से भारत वर्ष की देवभूमि कहे जाने वाले नवोदित पहाड़ी राज्य उत्तराखण्ड में स्थित चार धामों यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ तथा बद्रीनाथ में विराजमान देवी देवताओं की डोली विधि-विधान से पूजा अर्चना कर उनके शीतकालीन निवास स्थान से लाकर ग्रीष्मकालीन निवास स्थान यमुनोत्री धाम, गंगोत्री धाम, केदारनाथ धाम तथा बद्रीनाथ धाम में स्थित कर मंदिरों के कपाट दर्शन, पूजा-पाठ के लिए खोल दिए जाते है, जिसकी सूचनायें मुझको समाचार पत्रों तथा न्यूज चैनलों के माध्यम से बार-बार मिल रही थीं। वर्ष 2006 में भी मैं यमुनोत्री तथा गंगोत्री धाम की यात्रा चूका था, परन्तु इस बार यमुनोत्री,गंगोत्री, केदारनाथ तथा बद्रीनाथ में वर्ष 2013 में आई प्राकृतिक आपदा के कारण क्षतिग्रस्त हुयी दुर्गम सड़कों के सही ढंग से पुनर्निर्माण न होने सूचनाओं के कारण मन सशंकित था कि कहीं क्षतिग्रस्त सडकों के कारण किसी कठिनाई का सामना न करना पड़े। मन में उठ रहे इन्ही विचारों के बीच कई इष्ट मित्रों से साथ चलने के लिए कहा सभी ने मना कर दिया, जिस कारण धीरे- धीरे मई माह व्यतीत हो गया। चूँकि माँ यमुनोत्री तथा गंगोत्री के दर्शनों की इच्छा बलवती होती जा रही थी इसीलिए शुरू ही एक बार फिर से किसी को साथ ले जाने का भगीरथ प्रयास किया गया, जिसमें साथ के सहकर्मी श्री भुवनेश पाण्डेय अपने सुपुत्र ऋषिकुमार के साथ चलने के लिए तैयार हो गए, इधर मैंने भी अपने मामा जी के सुपुत्र महेश को साथ में चलने लिए तैयार कर लिया। अब बस अपनी कार को चलाने के लिए ड्राइवर की जरुरत थी। चार-पांच ड्राइवरों से सम्पर्क किया गया, परन्तु कोई भी पहाड़ी रास्तों पर चलने के लिए तैयार नहीं हुआ इसी बीच याद आया कि हमारी कार को सही करने वाले गैराज के मालिक कमल ने कई बार पहाड़ों पर चलने के लिए कहा था। जब कमल से सम्पर्क किया गया तो उसने 5 जून को चलने के लिए हामी भर दी। कमल एक अच्छे मिस्त्री के साथ कुशल ड्राइवर भी है। उधर महेश ने भी बरेली में मिलने को कहा।
जून के प्रथम सप्ताह के अन्तिम दिनों में 5 तारीख भी आ गयी और फ़र्रूख़ाबाद से हम चार लोग पूर्वनियोजित कार्यक्रम के अनुसार शुक्रवार को दोपहर बाद तीन बजे फर्रुखाबाद से पहले पड़ाव ऋषिकेश के लिए रवाना हो गए। लगभग 100 किमी चलने के बाद फरीदपुर से पहले कार के अगले पहिये के पास लगे सस्पेंशन का क्लिप टूटी हुई सड़क के गड्ढों के कारण टूट गया, जिसको सही कराने के लिए फरीदपुर के कई गैराजों में दिखाया परन्तु सभी ने मना कर दिया और कहा कि यह तो बरेली में ही सही हो सकेगा। धीरे-धीरे किसी तरह बरेली सैटेलाइट बस स्टॉप पहुँच कर महेश को साथ लिया और फिर गैराज की ओर गाड़ी ले गए। वहाँ कार को सही होते-होते रात के 9.00 बज गए । कार सही होते ही फिर से सफर शुरू हो गया। रात के 10.30 बज रहे थे इसलिए भूख भी जोरों से लग आई थी मुरादाबाद से पहले सड़क के किनारे स्थित एक अच्छे से ढाबे पर गाड़ी रोकी और खाना खाया। खाना खाकर फिर से ऋषिकेश की तरफ चल दिए। रात में छोटे वाहन मोटरसाइकिल इत्यादि न चलने के कारण तेजी से हमारी कार ऋषिकेश की ओर बढ़ी चली जा रही थी। रास्ते में पड़े कांठ, धामपुर, नगीना, नजीबाबाद और हरिद्धार होते हुए सुबह के 3.00 बजे हम लोग ऋषिकेश पहुँचे। ऋषिकेश में लक्ष्मण झूला के पास पहले से ही बुक कराये गए काली कमली पंचायत क्षेत्र की होटलनुमा धर्मशाला में पहुँच कर कार को धर्मशाला के नीचे ही पार्क कर दिया और सोने के लिए अपने-अपने कमरों में चले गए।
6 जून की सुबह 6.00 बजे जब आँख खुली तो गंगा जी की धारा की कल-कल करती हुयी मधुर संगीतमय आवाज सुनाई पड़ी आवाज को सुन कर कमरे बाहर निकले तो ऋषिकेश की शान्त और सुहानी सुबह हमारा इन्तजार करती मिली। होटल की बॉलकनी से सामने दिख रही हरी-भरी शिवालिक पहाड़ों की चोटियों की तलहटी में गंगा जी काफी चौड़ाई में अपने पूरे वेग के साथ बह रहीं थीं। हरे-भरे शिवालिक पहाड़ों की छाया के कारण गंगा जी के पानी में हरा रंग घुला होने का अहसास हो रहा था। अपने उदगम स्थान से निकलने के बाद पहली बार गंगा जी को चौड़ा पाट ऋषिकेश में ही मिलता है। होटल की नीचे सड़क पर से श्रद्धालू गंगा स्नान के लिए गंगा जी की दूसरी तरफ जाने के लिए लक्ष्मण झूला की ओर जा रहे थे। कुछ देर तक मैं धर्मशाला की बॉलकनी में खड़ा होकर उस अलौकिक, मनोहारी प्राकृतिक दृश्य का मंत्रमुग्ध होकर रसपान करता रहा। 10- 15 मिनट के बाद फिर अपने कमरे में आकर दैनिक कार्यों से निवृत्त हुआ और कपड़े पहन कर लक्ष्मण झूला पर से निकल कर गंगा जी के किनारे-किनारे टहलने का प्रोग्राम बनाया। मेरे साथ टहलने के लिए महेश, पाण्डेय जी के सुपुत्र और ड्राइवर कमल भी चल दिए। लक्ष्मण झूला पर से पहाड़ों से पहली बार मैदानों में आती हुयी गंगा जी का अविस्मरणीय विहंगम दृश्य नजर आया।
जून के प्रथम सप्ताह के अन्तिम दिनों में 5 तारीख भी आ गयी और फ़र्रूख़ाबाद से हम चार लोग पूर्वनियोजित कार्यक्रम के अनुसार शुक्रवार को दोपहर बाद तीन बजे फर्रुखाबाद से पहले पड़ाव ऋषिकेश के लिए रवाना हो गए। लगभग 100 किमी चलने के बाद फरीदपुर से पहले कार के अगले पहिये के पास लगे सस्पेंशन का क्लिप टूटी हुई सड़क के गड्ढों के कारण टूट गया, जिसको सही कराने के लिए फरीदपुर के कई गैराजों में दिखाया परन्तु सभी ने मना कर दिया और कहा कि यह तो बरेली में ही सही हो सकेगा। धीरे-धीरे किसी तरह बरेली सैटेलाइट बस स्टॉप पहुँच कर महेश को साथ लिया और फिर गैराज की ओर गाड़ी ले गए। वहाँ कार को सही होते-होते रात के 9.00 बज गए । कार सही होते ही फिर से सफर शुरू हो गया। रात के 10.30 बज रहे थे इसलिए भूख भी जोरों से लग आई थी मुरादाबाद से पहले सड़क के किनारे स्थित एक अच्छे से ढाबे पर गाड़ी रोकी और खाना खाया। खाना खाकर फिर से ऋषिकेश की तरफ चल दिए। रात में छोटे वाहन मोटरसाइकिल इत्यादि न चलने के कारण तेजी से हमारी कार ऋषिकेश की ओर बढ़ी चली जा रही थी। रास्ते में पड़े कांठ, धामपुर, नगीना, नजीबाबाद और हरिद्धार होते हुए सुबह के 3.00 बजे हम लोग ऋषिकेश पहुँचे। ऋषिकेश में लक्ष्मण झूला के पास पहले से ही बुक कराये गए काली कमली पंचायत क्षेत्र की होटलनुमा धर्मशाला में पहुँच कर कार को धर्मशाला के नीचे ही पार्क कर दिया और सोने के लिए अपने-अपने कमरों में चले गए।
6 जून की सुबह 6.00 बजे जब आँख खुली तो गंगा जी की धारा की कल-कल करती हुयी मधुर संगीतमय आवाज सुनाई पड़ी आवाज को सुन कर कमरे बाहर निकले तो ऋषिकेश की शान्त और सुहानी सुबह हमारा इन्तजार करती मिली। होटल की बॉलकनी से सामने दिख रही हरी-भरी शिवालिक पहाड़ों की चोटियों की तलहटी में गंगा जी काफी चौड़ाई में अपने पूरे वेग के साथ बह रहीं थीं। हरे-भरे शिवालिक पहाड़ों की छाया के कारण गंगा जी के पानी में हरा रंग घुला होने का अहसास हो रहा था। अपने उदगम स्थान से निकलने के बाद पहली बार गंगा जी को चौड़ा पाट ऋषिकेश में ही मिलता है। होटल की नीचे सड़क पर से श्रद्धालू गंगा स्नान के लिए गंगा जी की दूसरी तरफ जाने के लिए लक्ष्मण झूला की ओर जा रहे थे। कुछ देर तक मैं धर्मशाला की बॉलकनी में खड़ा होकर उस अलौकिक, मनोहारी प्राकृतिक दृश्य का मंत्रमुग्ध होकर रसपान करता रहा। 10- 15 मिनट के बाद फिर अपने कमरे में आकर दैनिक कार्यों से निवृत्त हुआ और कपड़े पहन कर लक्ष्मण झूला पर से निकल कर गंगा जी के किनारे-किनारे टहलने का प्रोग्राम बनाया। मेरे साथ टहलने के लिए महेश, पाण्डेय जी के सुपुत्र और ड्राइवर कमल भी चल दिए। लक्ष्मण झूला पर से पहाड़ों से पहली बार मैदानों में आती हुयी गंगा जी का अविस्मरणीय विहंगम दृश्य नजर आया।
लक्ष्मण झूला से दिखता गंगा जी का विहंगम दृश्य |
बहुमंजिला मन्दिर साथ में बहती गंगा जी |
लक्ष्मण झूला पर महेश |
लक्ष्मण झूला लोहे की रस्सियों पर बना हुआ पुल है जिसकी लम्बाई 450 फुट है। लक्ष्मण झूला के बीच पर पहुँचने पर पुल हिलने का अहसास हो रहा था। पुल क्रास करके हम लोग बायीं ओर गंगा जी के किनारे-किनारे बनी सड़क पर टहलने के लिए चल दिए। कुछ दूर चलने के पश्चात यह सड़क दुगड्डा की ओर जाने वाली सड़क से मिल जाती है और इसी सड़क पर आगे चलने पर एक सड़क नीलकण्ठ महादेव के लिए मुड़ जाती है। हम लोग लगभग दो किमी चल कर बायीं ओर किनारे बह रही पतित पावनी गंगा जी के तट की ओर उतर गए, नरम रेत और छोटे-बड़े पत्थरों पर से होते हुए गंगा जी की निर्मल धारा के नजदीक गए और अठखेलियां करती हुयी लहरों में पैर डाल कर बैठ गए। गंगा जी के ठण्डे पानी से मिश्रित शीतल हवा के झोंके तन-मन को असीम आनन्द प्राप्त करा रहे थे तथा हृदय में रामत्व का उदय भी करा रहे थे। लगभग आधा घण्टा यहाँ रुकने के बाद हम लोग अपनी धर्मशाला में चले आये। मैंने तो अपने कमरे में ही स्नान किया परन्तु पाण्डेय जी आदि साथी गणों ने गंगा स्नान करने के लिए धर्मशाला के सामने से बने रास्ते से नीचे चले गए। स्नानोपरांत नाश्ता करने धर्मशाला के पीछे से ऊपर बनी चौड़ी सी पार्किंग में आये। पार्किंग स्थल के चारों तरफ बहुत से खाने के होटल एवं रेस्तरां बने हुए थे तथा कई चार पहिया ठिलिया पर चाय, बिस्किट वाले चाय बेंच रहे थे। एक चाय वाले के पास छोले-कुल्छे भी बन रहे थे। सब लोगों ने चाय के छोले-कुल्छे का जम कर नाश्ता किया।
गंगा जी किनारे राजपूत जी |
गंगा जी किनारे राजपूत जी |
पाण्डेय जी और छोले-कुल्छे |
शिवम टी स्टॉल |
पौराणिक कथाओं में लक्ष्मण झूला -
किवदन्ती के अनुसार भगवान श्रीराम के अनुज भ्राता श्री लक्ष्मण जी ने गंगा जी के दूसरी तरफ जाने के लिए इसी स्थान पर जूट की रस्सियों से झूला पुल बना कर गंगा जी को पार किया था, लक्ष्मण जी द्वारा गंगा जी पर पुल बनाये जाने के कारण ही इसे लक्ष्मण झूला पुल कहा जाता है। लक्ष्मण झूला के पास में कई अन्य दर्शनीय मन्दिर बने हुए है।
मेरे मित्रों और साथियों ...... !! अब हम अपनी यमुनोत्री-गंगोत्री यात्रा भाग - 1 ( लक्ष्मण झूला) के यात्रा वृत्तान्त को यहीं विराम देते है तथा आशा करता हूँ कि आपको यह लेख पसन्द आया होगा। आपके सुझावों तथा सुन्दर से कमेन्ट्स का मुझे बेसब्री से इन्तजार रहेगा। अतः कृपया अपने सुझावों, कमेन्ट्स तथा टिप्पणियाँ मुझे नीचे दिख रहे "टिप्पणी बॉक्स" के माध्यम से अवश्य भेंजे। यमुनोत्री-गंगोत्री यात्रा भाग- 2 (यमुनोत्री ) का प्रकाशन आपके चिरपरिचित हिन्दी ब्लॉग "मुसाफ़िरनामा"में अतिशीघ्र प्रकाशित होगा। तब तक के लिए नमस्कार..........!!!
इस यात्रा संस्मरण लेखों की सूची
1- यमुनोत्री-गंगोत्री यात्रा भाग- 1 (लक्ष्मण झूला )
2- यमुनोत्री-गंगोत्री यात्रा भाग - 2 (यमुनोत्री धाम दर्शन )
3- यमुनोत्री-गंगोत्री यात्रा भाग - 3 (गंगोत्री धाम दर्शन )