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शनिवार, 9 मार्च 2013

दुगलबिट्टा

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आपने पिछले लेख "चोपता: एक अधूरी यात्रा" की अगली पोस्ट "रुद्रप्रयाग" तो अवश्य ही पढ़ी होगी, जिसमें हरिद्वार से १६२ किमी० की दूरी तय करते हुए ०८ मार्च की शाम को रुद्रप्रयाग पहुँच कर होटल में एक कमरा किराये पर लेकर रात्रि विश्राम किया तथा अगले दिन ०९ मार्च को संगम स्नान करने के पश्चात् पुन: चोपता यात्रा जारी रखी, का वर्णन है। उसी क्रम को बढ़ाते हुए अब हम आपको आगे ले चलते हैं..……… 
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०९ मार्च की सुबह १० बजे हम लोग रुद्रप्रयाग से अपनी आगे की यात्रा के लिए चल पड़े । हम लोगो की कार पुन: रुद्रप्रयाग की सुरंग के नीचे से होती हुयी केदारनाथ रोड पैर चल रही थी, संगम स्थल पीछे छूट गया था, जो दूर से देखने पर सुंदर लग रहा था। रास्ता काफी मनोहारी था, चारों तरफ ऊँचे-ऊँचे पहाड़ और  उन पर उगे हरे-भरे दरख़्त मन को लुभा रहे थे। बायीं तरफ काफी नीचे मंदाकनी नदी अपने पूरे वेग के साथ बह रही थी, ऐसे मनभावन दृश्यों को देखते-देखते रुद्रप्रयाग से १९ किमी० दूर अगस्तमुनि तक आ गए । अगस्तमुनि मंदाकनी नदी के तट पर बसा एक  छोटा सा पहाड़ी क़स्बा है, जो समुद्रतल से १००० मीटर की ऊँचाई पर बसा है । यह अगस्त मुनि की तप स्थली रही है । यहाँ पर स्थित अगस्तेश्वर महादेव मन्दिर ऋषि अगस्तमुनि को समर्पित है । अगस्तमुनि से ही बर्फ से लदे पहाड़ों  चोटियां दिखनी शुरू हो जाती हैं । 

अगस्तमुनि से आगे चलने पर भी मंदाकनी नदी हमारे बायीं ओर थी, जो अब सड़क के समानांतर होकर चौड़ी सी घाटी में विपरीत दिशा की ओर प्रवाहित हो रही थी । मंदाकनी नदी के साथ-साथ चलते हुए हम लोग अगस्तमुनि से १७ किमी दूर कुण्ड आ पहुंचे । कुण्ड से एक रास्ता गुप्तकाशी, फाटा, सोनप्रयाग होते हुए गौरीकुण्ड तक जाता है, गौरीकुण्ड से ही १४ किमी० की कठिन पैदल यात्रा करके केदारनाथ धाम जाया जाता है  तथा दूसरा दायी तरफ का रास्ता ऊखीमठ, दुगलबिट्टा, चोपता होता हुआ गोपेश्वर, चमोली चला जाता है । हमे भी अब  "ऊखीमठ-गोपेश्वर" मार्ग पर ही चलना था । 

अत: हमारी कार भी कुण्ड से दायीं तरफ "ऊखीमठ-गोपेश्वर" मार्ग पर मुड़ गयी। कुण्ड से ऊखीमठ ०८ किमी० की दूरी पर था, रास्ता काफी चढ़ाई वाला था,  जो बहुत ही ख़राब था । कहीं-कहीं पर तो सड़क भूस्खलन के कारण बिल्कुल ध्वस्त हो गयी थी, जिसे किसी तरह मिट्टी, पत्थर आदि से बराबर कर बमुश्किल चलने योग्य बनाया गया था । किसी-किसी स्थान पर तो ऐसा लगता था कि अब कार आगे नही जा पायेगी । ड्राइवर प्रदीप काफी सावधानी से उस टूटी-फूटी सड़क से कार निकाल रहा था । हम लोग उस खतरनाक सड़क को पार कर लगभग १२.३० बजे समुद्रतल से १३२५ मीटर ऊपर स्थित ऊखीमठ पहुंच गए । ऊखीमठ में विगत वर्षों में कई बार बादल फटने की हृदयविदारक घटनाये हुई हैं, जिनमें जान-माल का बहुत नुकसान हुआ था। शीतकाल में भगवान केदारनाथ के कपाट बंद हो जाते है तब भगवान केदारनाथ की डोली ऊखीमठ में लायी जाती है और कपाट खुलने तक यहीं भगवान केदारनाथ की पूजा-अर्चना की जाती है । मंदिर के निकट कार को पार्क कर हम लोग मंदिर परिसर में चले गए । वहां उपस्थित पुजारी जी ने हम लोगो को भगवान केदारनाथ जी के शीतकालीन  दर्शन कराये तथा हम सभी लोगो के मस्तक पर चन्दन का तिलक लगाया । मंदिर कमेटी ने मंदिर के फोटो खींचने से मना करने का दिशा निर्देश देता हुआ बोर्ड लगा रखा था इसलिए मंदिर कमेटी के दिशा निर्देशों का शतप्रतिशत पालन किया गया । कुछ देर मंदिर में रुकने के बाद अपने पूर्व निश्चित गंतव्य चोपता की ओर चल दिए । 

ऊखीमठ-चोपता मार्ग पर ही ऊखीमठ से थोड़ा आगे बढ़ने पर बायीं तरफ की पहाड़ी पर कुछ किमी० पैदल चल कर देवरिया ताल पहुंचा जा सकता है। देवरिया ताल लगभग २४०० मीटर की ऊँचाई पर स्थित स्वच्छ पानी का छोटा सा ताल है, जिसके साफ़ पानी में चौखम्बा पर्वत शिखर का प्रतिविम्ब दिखाई पड़ता है । 

ऊखीमठ से चोपता लगभग २६ किमी० दूर ऊखीमठ से २३०० मीटर की ऊँचाई पर है, इसका मतलब आगे सिर्फ चढ़ाई-ही-चढ़ाई थी । अभी १५ किमी० के आस-पास ही चले होंगे देवदार के पेड़ो की श्रृंखला शुरू हो गयी थी । हम लोग काफी ऊँचाई पर आ गए थे । चारो तरफ के पहाड़ों की चोटियों पर सिर्फ बर्फ दिख रही थी । कुछ एक-डेढ़ किमी० और चले होंगे तभी सड़क के किनारे के आस-पास जमी हुयी बर्फ भी दिखने लगी । थोड़ा सा और आगे चलने पर रास्ते में ही कुछ गाड़िया खड़ी हुयी थीं, अपनी कार खड़ी कर जब बाहर निकले तो देखा कि उन गाड़ियों के आगे एक फुट से ज्यादा बर्फ रास्ते पर ही पड़ी हुयी थी, जिसके ऊपर से होकर गाड़िया आगे नहीं जा सकतीं थीं । हम ऊखीमठ से लगभग २० किमी० दूरी पर स्थित दुगलबिट्टा के नजदीक आ गए थे । यह से दुगलबिट्टा एक किमी० ही था । अब आगे कैसे जाया जाय यही विचार कर रहे थे साथ ही रुद्रप्रयाग के होटल कर्मियों की बात याद आ रही थी । तभी दुगलबिट्टा की ओर से कुछ लड़के आ गए, जिनकी गाड़ियां पहले से ही यहां खड़ी हुईं थीं । उनसे आगे के रास्ते के सन्दर्भ में पूछा तो उन्होंने कहा कि..…

"आपको गाड़ी यहीं खड़ी करनी पड़ेगी  आगे  तीन फुट से भी  ज्यादा  बर्फ है "

"लेकिन  मुझे  तो चोपता  जाना  है "

"आप यही से आगे नहीं जा पाएंगे सारा रास्ता बंद है , चोपता तो और ऊँचाई  पर है  वहां तो और ज्यादा बर्फ है , हम लोग खुद चोपता जाने के लिए ही आये थे लेकिन नहीं जा पाये ,आगे यहीं दुगलबिट्टा में एक रिसोर्ट है  वहीँ रात में रुके थे । "

और इतना कह कर वह लोग अपनी गाड़ियां लेकर चले गए । 

हम लोगों ने अपनी कार यहीं पर छोड़ दी पैदल आगे की वास्तविकता का पता करने के लिए चल दिए । सड़क पर जगह-जगह बर्फ पड़ी हुयी थी, जो कि आने-जाने वाले के पैरो के नीचे दब कर मजबूत हो चुकी थी, जिस पर बहुत फिसलन थी । उस फिसलनी बर्फ पर से बड़ा संभल कर निकलना पड़ रहा था, जरा सी लापरवाही पर गिरना निश्चित था । आगे दुगलबिट्टा पहुँच कर देखा तो चारों तरफ सड़क से लेकर पहाड़ों की चोटियों तक बर्फ की मोती चादर बिछी हुयी दिखाई दी। आगे दिख रही सड़क पर तीन फुट से ज्यादा बर्फ पड़ी हुयी थी, जहां से गाड़ी तो क्या पैदल भी जाने में परेशानी होती । वहीं से नीचे की ओर घाटी में एक रिसॉर्ट बनी हुयी थी, जहां रात में रुकने की व्यवस्था थी । 

ड्राइवर प्रदीप और भारद्वाज जी बर्फ को देख कर बहुत उत्साहित थे प्रदीप ने इस तरह फैला बर्फ का साम्राज्य पहली बार देखा था, जिस कारण वह कुछ ज्यादा ही उल्लास में था । दुगलबिट्टा में बहुत शांत वातावरण था, चारो तरफ के नज़ारे मन को प्रफुल्लित कर रहे थे । सभी दिशाओं में विद्यमान क्षितिज को छूते पहाड़ो पर देवदार के पेड़ो की बहुलता थी, विराट हिमालय का नयनाभिराम दृश्य बड़ा ही अलौकिक लग रहा था । मैदानी इलाकों के कोलाहल से दूर सुरम्य हिमालय की वादियां मन पर अपनी अमिट छाप छोड़ रही थीं । हम लोग बर्फ में आगे कुछ दूरी तक गए, बर्फ बहुत भुरभुरी थी, जिस पर पैर रखते ही एक फुट से ज्यादा नीचे चला जाता था। वहां पर घूमते तथा फोटो लेते हुए हमे लगभग दो घण्टे हो गए थे। चूँकि हमारी मंजिल चोपता थी, जो अब बर्फ की वजह और उत्तराखंड प्रशासन की उदासीनता के कारण भविष्य में होने वाली यात्रा का रूप ले चुकी थी। अब दुगलबिट्टा से वापस घर चलने की बारी थी। अत: सभी लोगो ने विचार किया कि घर "कर्णप्रयाग-रानीखेत-नैनीताल मार्ग" से निकल चलते हैं, देर शाम को गैरसैंण में रुक लेंगे। गैरसैंण में के० एम० वी० एन० का गेस्ट हाउस है, जहां मैं पहले भी एक बार बद्रीनाथ से वापसी में रुक चुका था, यात्रा सीजन न होने के कारण खाली ही मिलेगा।  

कुछ बातें फोटो के माध्यम से भी.…


ऊखीमठ से आगे रस्ते में 

  
दुगलबिट्टा से ऊपर चोपता की तरफ जाती हुयी सड़क पर पड़ी हुयी दिखती बर्फ 

सड़क की किनारे पड़ीं बर्फ पर राजपूत जी और ड्राइवर प्रदीप 

प्रदीप 


राजपूत जी 

सड़क पर बर्फ 

सड़क पर बर्फ लिए खड़ा प्रदीप और दायीं तरफ दिखतीं हिमालय की हिम से लदीं चोटियाँ 
नीचे घाटी में स्थित रिसोर्ट 




बर्फ की दरार में लेते भरद्वाज जी 

राजपूत जी और भारद्वाज जी 








कैमरा ज़ूम मोड पर के खींची फोटो 

अब ये मोटरसाइकिल चलाएगा 

दुगलबिट्टा से घर वापसी 
दुगलबिट्टा से हम लोग चार बजे घर की ओर निकल पड़े।  रस्ते में ऊखीमठ, रुद्रप्रयाग, गौचर होते हुए दुगलबिट्टा से ९२ किमी० दूर कर्णप्रयाग  ७ बजे पहुँच पाये, यहां पिण्डारी ग्लेशियर से निकली पिण्डर नदी अलकनंदा नदी में समा जाती है। कर्णप्रयाग से पहले सड़क तीन भागों में विभक्त होती है, बायीं ओर का रास्ता बद्रीनाथ चला जाता है तथा दायीं ओर का रास्ता बस्ती के बाहर से होता हुआ रानीखेत चला जाता है। सामने वाली सड़क बाजार से होती हुयी रानीखेत मार्ग से मिल जाती है। भूख लग रही थी इसलिए खाने के लिए फल, बिस्किट आदि लेना था जिस कारण हम लोग बाजार होते हुए निकले। फल आदि खाने का सामान लेकर आदिबद्री होते हुए लगभग ४६ किमी० दूर गैरसैंण के लिए रवाना हो गए। कर्णप्रयाग से आगे रास्ता ख़राब था, सड़क कई जगह से उखड़ी हुयी थी। रात में उत्तराखंड के पहाड़ी रास्तो पर आवागमन बहुत काम होता, कर्णप्रयाग से गैरसैंण तक मात्र तीन-चार वाहन ही आते हुए मिले। हम लोग भी आराम से चलते हुए रात ९ बजे कुमायूँ मण्डल विकास निगम के गेस्ट हाउस में पहुँच गए। गेस्ट हाउस पहुँच के फ्रेश हुए उसके बाद खाना खाकर सो गए। अगले दिन सुबह दैनिक कार्यों से निवृत्त हो कर, सुबह का नाश्ता गेस्ट हाउस में ही कर द्वाराहाट, रानीखेत, भुवाली, भीमताल, काठगोदाम, हल्द्वानी, बरेली होते हुए रात के १० बजे फर्रुखाबाद आ गए।

कुछ रास्ते के चित्र भी हो जाएं …… 


कर्णप्रयाग से पहले भरद्वाज जी प्रसन्न मुद्रा में 

बायीं ओर प्रवाहित होती अलकनंदा तथा कर्णप्रयाग की ओर जाती हुयी लहराती-बलखाती सड़क 

प्रदीप: एक कुशल पहाड़ी ड्राइवर 

रानीखेत से पहले चीड़ के पेड़ो का नजारा 

किसी गहन सोच में प्रदीप 

श्री भारद्वाज जी रस्ते में पड़े द्वाराहाट कस्बे के बारे में सोचते हुए  

मेरे अभिन्न मित्रों तथा प्रिय पाठकों……! अब हम अपनी "चोपता: एक अधूरी यात्रा" की अन्तिम पोस्ट "दुगलबिट्टा"  के यात्रा वृत्तांत को यहीं पूर्णविराम देते हैं तथा उम्मीद करते हैं आपको यह लेख पसंद आया होगा। आपके सुझावों, कमेन्ट्स का हमें इन्तजार रहेगा। अतः कृपया अपने सुझावों, कमेन्ट्स तथा टिप्पणियां हमें नीचे दर्शित "टिप्पणी बॉक्स" में अवश्य भेजें। आगे भविष्य में किसी अन्य स्थान की यात्रा अवश्य की जाएगी, जिसका यात्रा वृत्तांत "मुसफ़िरनामा"  में शीघ्र ही आपके समक्ष नए अनुभवों, नये आयामों के साथ प्रकाशित किया जायेगा, तब तक के लिए नमस्कार मित्रों…। 
                                                                                                              
इस यात्रा वृत्तांत के लेखों की सूची 
  1. चोपता: एक अधूरी यात्रा 
  2. रुद्रप्रयाग 
  3. दुगलबिट्टा