औली यात्रा भाग…१(एक): देवप्रयाग
सभी साथियों को मेरा प्रणाम….... ! साथियों आज हम आपको हिमालयी राज्य उत्तराखण्ड में स्थित विश्वप्रसिद्ध पर्वतीय पर्यटक स्थल औली की यात्रा पर ले चलते हैं। इस यात्रा संस्मरणों के कुल दो भाग आपके अपने चिरपरिचित हिन्दी ब्लॉग "मुसाफिरनामा" के माध्यम से आपके सामने यात्रा वृत्तांत के रूप में रखने का प्रयास कर रहा हूँ। उपरोक्त यात्रा अपनी नई इंडिगो कार द्वारा १० मई २०१२ को शुरू की गयी, जो आपके सम्मुख प्रस्तुत है। उम्मीद करता हूँ आपको यह यात्रा वृत्तांत अवश्य पसंद आएगा।
अब यात्रा वृत्तांत पर चलते हैं.…!
अप्रैल महीने के आख़िरी दिन चल रहे थे, मैदानी क्षेत्रों में बसंत ऋतु अपनी
अंतिम अंगड़ाई लेकर विदा हो चुकी थी, खेतों में खिले सरसों के फूल भी फली में बदल
कर पक चुके थे, आम के पेड़ों पर छोटे-छोटे आम दिखाई पड़ने लगे थे कुछ ही दिनों बाद
गर्मी तेज हवाओं के साथ अपने प्रचण्ड रूप से लोगों को रूबरू कराने वाली थी। परन्तु
इसके ठीक दूसरी ओर "हिमालय " के कई क्षेत्रों में अभी बसंत ऋतु का आगमन हो रहा होगा। पहाड़ों की ऊंचाईयों पर स्थित छोटे-बड़े ढलावदार मैदानों पर सर्दियों में पड़ी बर्फ़ पिघल
चुकी होगी, बर्फ़ पिघलने के बाद उगी घास से मैदान हरे-भरे बुग्यालों में बदल चुके
होंगे। चारों तरफ हरियाली का अथाह समुन्दर दिलकश एहसास के साथ जन-मानस के साथ
हिल-मिल रहा होगा। पहाड़ों की कंदराओं से निकले झरनों से झरते पानी का मधुर संगीत,
घाटियों में बहती नदियों का कल-कल करता पानी, सब-कुछ एक नई उमंग और तरंग के साथ
मिलन कर रहा होगा। प्रकृति के ऐसे अनूठे रूप को पास से देखने को मेरा मन भी किसी
पर्वतीय स्थल पर जाने को बार-बार प्रेरित कर रहा था। अंततः मैंने भी अपने मन की
मानी और कुदरत के हसीन नजारों को अपनी नजरों में समाने के लिए हिमालय की यात्रा
करने की तैयारी की और स्थान निश्चित किया "उत्तराखण्ड " राज्य में "ऋषिकेश-बद्रीनाथ मार्ग" पर स्थित
जोशीमठ से १६ किमी दूरी पर स्थित विश्वप्रसिद्ध पर्वतीय स्थल “औली” ।
औली जाने के लिए दिन तारीख़ निश्चित करने की जद्दोजहद चल रही थी तभी
मुजफ्फरनगर में रहने वाले एक नजदीकी रिश्तेदार के यहाँ से १० मई को प्रथम
जन्मोत्सव में आयोजित प्रीतभोज में सम्मिलित होने का निमंत्रण प्राप्त हुआ, जिसमें
भी मुझे जाना था, जिस कारण अपनी वास्तविक यात्रा ११ मई से शुरू होना निश्चित हुई।
१० मई की सुबह ०७ बजे हम अकेले अपने ड्राइवर लालू को लेकर कार से मुजफ्फरनगर
के लिए रवाना हो गए। फ़र्रुखाबाद से मुजफ्फरनगर ३८५ किमी की दूरी पर है, रास्ते
में बरेली, रामपुर, मुरादाबाद, बिजनोर होते हुए हम दोपहर बाद ३.०० बजे मुजफ्फरनगर
पहुंचे, शाम को आयोजित दावत में शामिल हुए। अगले दिन वहाँ से औली चलने की तैयारी
शुरू की तो वहां पर उपस्थित नरेन्द्र जी “मामा जी” और आकाश जी भी साथ जाने के लिए
तैयार हो गए।
अतः ड्राइवर सहित कुल चार लोग शाम को ०४ बजे मुजफ्फरनगर से चल कर रुड़की होते
हुए १०५ किमी दूर ऋषिकेश पहुँच गए। ऋषिकेश में लक्ष्मण झूला के पास स्थित एक होटल
में दो कमरे किराये पर लेकर उनमें अपने-अपने बैग रखे तथा लक्ष्मण झूला पार करके कुछ तक दुगड्डा की ओर जाने वाली
सड़क पर टहलने चले गए और वापसी में इसी सड़क पर स्थित छोटे से बाजार में बने ठीक-ठाक
रेस्तरां में खाना खाकर अपने होटल में आकर सो गए। अगले दिन १२ मई को सो कर उठे तो
गंगा नदी के बहते पानी की मधुर आवाज के साथ ऋषिकेश की सुहावनी सुबह हमारा इंतजार कर
रही थी, कमरे से बाहर निकल कर देखा तो पाया कि वातावरण में सुकून देने वाली ख़ामोशी
थी, सामने दिख रहीं शिवालिक की हरी-भरी पहाडियो की तलहटी में बहती गंगा जी की तेज
धारा में श्रद्धालू स्नान कर रहे हैं। हम लोगों ने फटाफट होटल में ही नहाया और लक्ष्मण
झूला पार करके बने रेस्तरां में नाश्ता करने निकल गए। लक्ष्मण झूला से गंगा नदी
का विहंगम दृश्य दिखाई दे रहा था। कुछ रोमांच को पसंद करने वाले पर्यटक ऋषिकेश के
आगे से गंगा नदी में रिवर राफ्टिंग करते हुए पुल के नीचे से आगे की ओर जा रहे थे।
 |
लक्ष्मण झूला, ऋषिकेश से दिखता गंगा जी का विहंगम दृश्य |
 |
गंगा जी में रिवर राफ्टिंग करते पर्यटक |
नाश्ता करने के बाद हम लोगों ने कमरे में फैले अपने-अपने
कपड़े बैगों में रख कर अपनी कार से राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या ५८ पर गंगा नदी के
बायीं ओर चल दिए | रास्ते में ब्यासी, शिवपुरी होते हुए ऋषिकेश से ७० किमी दूर देवप्रयाग
लगभग ११.३० बजे पहुँच गए।
देवप्रयाग के बारे में जानकारी
देवप्रयाग राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या ५८ पर बसा एक
सुन्दर पहाड़ी क़स्बा है, यह टिहरी गढ़वाल जिले में आता है। इसकी समुद्रतल से ऊँचाई
१५०० फीट है। किवदंती के अनुसार कालान्तर में देवशर्मा नाम के तपस्वी ब्राम्हण ने
यहां कई वर्षों तक कठोर तपस्या करके भगवान विष्णु को प्रसन्न किया था, जिस कारण इस
स्थान का नाम देवप्रयाग पड़ा। देवप्रयाग उतराखण्ड के पंच प्रयागों (देवप्रयाग, रुद्रप्रयाग,
कर्णप्रयाग, सोनप्रयाग एवं विष्णुप्रयाग) में सबसे अधिक महत्व रखता है। देवप्रयाग
में अलकनंदा नदी एवं भागीरथी नदी का संगम होता है, दोनों नदियों के संगम होने के
पश्चात् ही देवप्रयाग से आगे इन साझा नदियों को पहली बार गंगा नदी के नाम से जाना
जाता है। प्राचीनकाल में उत्तराखण्ड की चारधाम यात्रा पैदल और खच्चरों के द्वारा
की जाती थी, तब भी देवप्रयाग बद्रीनाथ मार्ग पर स्थित था। यात्री देवप्रयाग में
रात्रि विश्राम कर संगम पर स्नान कर पुनः आगे की यात्रा पर निकलते थे। पुराने समय
में देवप्रयाग को ब्रम्हपुरी, ब्रम्हतीर्थ तथा श्रीखण्ड नगर के नाम से पुकारे जाने
का उल्लेख विभिन्न ग्रंथो में है। बताया जाता है की स्कन्द पुराण के केदारखण्ड
में ग्यारह (११) अध्यायों में भी देवप्रयाग का उल्लेख मिलता है। देवप्रयाग में
संगम स्थल जाने वाले रास्ते पर आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा आठवीं सदी में निर्मित
कराया गया प्राचीन रघुनाथ जी मंदिर है, जो कत्यूरी शैली में है।
पkSराणिक कथाओँ में देवप्रयाग
देवप्रयाग से सम्बन्धित अनेकों पkSराणिक प्रचलित है, जिनसे देवप्रयाग का प्राचीनकाल से अस्तित्व में होना
दर्शाता है, कुछ अतिप्रचलित कथाएं.............
- कहा जाता है कि
ब्रम्हांड की रचना करने से पहले ब्रम्हा जी ने यहां दस हजार वर्षों (१००००) तक
भगवान विष्णु की आराधना कर सुदर्शन चक्र प्राप्त किया था, जिस कारण इसको
ब्रम्हतीर्थ एवं सुदर्शन क्षेत्र कहा जाता है।
- माना जाता है कि
कालान्तर में तपस्वी देवशर्मा ने यहां ११००० वर्षोँ तक कठोर तपस्या करके भगवान
विष्णु को प्रसन्न किया था, जिन्होंने प्रकट होकर देवशर्मा से कहा कि वह त्रेता
युग में देवप्रयाग आएंगे, जिसे उन्होंने भगवान राम बनकर पूरा किया। त्रेता युग
में विष्णु अवतार भगवान श्रीराम द्वारा श्रीलंका के राजा रावण तथा कुम्भकर्ण का वध
किया था, जिस कारण लगे ब्रम्ह हत्या के दोष का निवारण करने हेतु भगवान राम अपनी
पत्नी सीता एवं अनुज लक्ष्मण के साथ देवप्रयाग में अलकनंदा एवं भागीरथी के संगम पर
तप करने आये थे। जिसका उल्लेख केदारखण्ड में मिलता है।
---------------------------------------------------
देवप्रयाग पहुँच
कर लालू ड्राइवर को कार के पास ही छोड़ कर सड़क के दायीं ओर नीचे की तरफ़ जाते हुए
रास्ते पर उतर गए, यह ढलानदार रास्ता सीधे भागीरथी
नदी पर लोहे की रस्सियों से बने झूलापुल तक ले गया, झूलापुल पार करते हुए हम लोग सीढियां उतर कर नीचे संगम तक पहुँच गए। भीड़-भाड़ नहीं थी, एक-दो लोग ही यहां पर स्नान कर रहे
थे। भागीरथी का प्रवाह काफी तेज था
जबकि अलकनंदा अपने शांत रूप से प्रवाहित हो रही थी। प्रकृति के बीच दोनों नदियों के संगम से उत्पन्न यहां का दृश्य अनूठा
था। हम लोग कुछ देर दोनों नदियों के एक
दूसरे में समाहित होकर बहने के सुन्दर दृश्यों को निहारते रहे, चूँकि हमें यहां से लगभग १८५ किमी
दूर जोशीमठ पहुँचना था, रास्ता पूरा पहाड़ी होने के कारण ६
घंटे से ज्यादा का समय लगना स्वभाविक था।पहाड़ी रास्तों पर
एक घंटे में लगभग २० से ३० किमी ही गाड़ी चल पाती है, इसलिए यहां ज्यादा वक्त देना
उचित नहीं समझा। अतः अब यहां से चलने की बारी थी, ऊपर सड़क पर आकर नजदीक की
दुकानों से रास्ते में खाने के लिए फल, बिस्किट, चिप्स एवं भुजिया के पैकट
लेकर कार में रखे और एक किमी चलने के बाद दायीं तरफ़ बने भागीरथी नदी के पुल को पार
करके राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या ५८ पर चल दिए।
 |
अलकनंदा एवं भागीरथी नदी के संगम के बाद दिखती गंगा जी |
 |
भागीरथी नदी का तेज प्रवाह |
अलकनंदा नदी हमारे दायीं ओर प्रवाहित हो रही थी, रास्ता मनोहारी था। पहाड़ो
की घाटी में बहती अलकनंदा नदी, पहाड़ी ढलानों पर बने सीढ़ीदार खेत तथा उनके आस-पास
बने मकान हिमालय की सुंदरता में चार चाँद लगा रहे थे।सर्पीली, लहराती सड़कों पर
हमारी कार ख़ूबसूरत वादियों के बीच से होती जोशीमठ की ओर बढ़ रही थी। हिमालय के सोंदर्य
को निहारते हुए हम लोग देवप्रयाग से श्रीनगर (33km), दूसरे प्रयाग रुद्रप्रयाग (68km),
गोचर(90km), तीसरे प्रयाग कर्णप्रयाग(100km), चोथे प्रयाग नंदप्रयाग(120km), चमोली(140km) होते
हुए जोशीमठ शाम को लगभग ०७ बजे पहुँच गए।जोशीमठ में पहुँच कर सर्दी का भरपूर
एहसास हुआ, इसलिए शाल ओढ़ ली गयी। अब यहां पहला काम रात में रुकने के लिए अपने बजट
के अनुरूप कमरा ढूँढना था। कई होटलों में जाकर मोलभाव किया तब कहीं जाकर जोशीमठ
शहर के अन्दर जाने वाली सड़क पर दो कमरे १२०० रूपये में लिए गए। कार को होटल के
नजदीक सड़क पर पार्क कर कमरे में सामान ले गए फिर हाथ मुँह धोकर फ्रेश हुए और खाना
खाने के लिए मुख्य सड़क के किनारे पर बने खाने के होटल पर जाकर खाना खाया सर्दी
बढ़ रही थी इसलिए भोजन करने के बाद अपने कमरे में आकर मोटी रजाई ओढ़ कर सो गए।
कुछ कुदरत की चित्रकारी मेरे माध्यम से
 |
गंगा नदी में रिवर राफ्टिंग के लिए जाते पर्यटक
|
 |
देवप्रयाग
संगम पर मामा जी एवं आकाश जी |
 |
मामा
जी के साथ राजपूत जी |
 |
पहाड़ो को काट कर बनाये गए सीढ़ीदार खेत |
 |
लहराती,
बलखाती सड़क के साथ बहती अलकनंदा नदी |
 |
घाटी में बहती अलकनंदा नदी, सीढ़ीदार खेत तथा सुंदर पर्वतीय नजारों के बीच
में नीचे घाटी में दिखता एक झूलापुल
|
 |
अब देखो
पास से झूलापुल और ऊपर की ओर दिखाई दे रही सड़क पर आती हुयी बस |
 |
हरे-भरे
पहाड़, सीढ़ीदार खेत और अलकनंदा नदी |
 |
पहाड़
की चोटी पर दूर से दिखती बर्फ, उठते हुए बदल तथा गहरी संकरी घाटी में बहती अलकनंदा
नदी |
मित्रों अब हम अपने औली यात्रा भाग.....१(एक): देवप्रयाग यात्रा वृत्तांत के
लेख को यहीं आराम देते हैं और अगले लेख में आपको जोशीमठ, ख़ूबसूरत पर्वतीय स्थल औली
तथा बद्रीनाथ तक ले जायेंगे। तब तक के लिए नमस्कार मित्रों .....!
इस यात्रा संस्मरण के लेखों की सूची
१ - औली यात्रा भाग.....१ (एक): देवप्रयाग
२ - औली यात्रा भाग.....२ (दो): औली विचरण एवं बद्रीनाथ दर्शन