रुद्रप्रयाग गढ़वाल मण्डल का एक नवसृजित जिला है । जिसका गठन १६ सितम्बर १९९७ को चमोली, पौड़ी एवं टिहरी के कुछ हिस्सों को काट कर किया गया था । यह समुद्रतल से लगभग ९०० मीटर की ऊंचाई पर स्थित है । रुद्रप्रयाग से भगवान शिव जी को समर्पित विश्व प्रसिद्ध श्री केदारनाथ धाम मात्र ८६ किमी० की दूरी पर स्थित है । रुद्रप्रयाग का नाम भगवान शिव की अवतार "रूद्र" के नाम से पड़ा है । पुराणों के अनुसार यहाँ नारद मुनि ने घोर तपस्या कर भगवान शिव जी को प्रसन्न किया किया था, जिसके फलस्वरूप भगवान शिव जी ने "रूद्र" के अवतार में नारद मुनि को वरदान इसी जगह पर दिया था । रुद्रप्रयाग शहर में सभी प्रशासनिक सेवाओं के मुख्यालय स्थित हैं । रुद्रप्रयाग में बद्रीनाथ से आयी अलकनंदा नदी तथा केदारनाथ से आयी मंदाकनी नदी का संगम होता है ।
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०९ मार्च को हम लोग रूद्रप्रयाग में थे, सुबह ०७ बजे जब आँख खुली तो कमरे से बाहर निकल कर देखा तो काफी सर्दी थी, धूप पहाड़ों की चोटियों पर अपने पैर पसारने लगी थी, तभी श्री भारद्वाज जी ने संगम में स्नान करने की इच्छा व्यक्त की, चूँकि संगम स्थल हमारे होटल से ०२ किमी० दूर रुद्रप्रयाग शहर की तरफ आखिरी छोर पर था इसलिए वहाँ तक जाने के लिए अपने वाहन का सहारा लेना उचित समझा । हम लोगों ने संगम नहाने के लिए अपने-अपने कपड़े लिए और संगम की ओर चल दिए, जाते-जाते होटल कर्मियों को आलू के पराठें तैयार रखने का आदेश भी दे दिया । होटल से ०२ किमी० दूर रुद्रप्रयाग-केदारनाथ मार्ग पर कुछ दुकानों को पार करते ही एक सुरंग मिलती है सुरंग से निकलते ही बांयी ओर संगम स्थल है । नीचे संगम पर जाने के लिए सीढ़ियां बनी हुयी थी। कार को वहीं पर किनारे पर बने एक विश्राम ग्रह के पास पार्क कर सीढ़ियों से नीचे उतर कर एक झूला पुल पार किया और जा पहुँचे संगम स्थल पर। संगम स्थल पर मंदाकनी और अलकनंदा नदियां एक दूसरे से गले मिलकर एक अनोखी खूबसूरती प्रस्तुत कर रहीं थीं । संगम स्थल पर हम लोगों के आलावा कोई नहीं था । चारो तरफ बड़ा ही मनोरम दृश्य अवलोकित हो रहा था, शांत वातावरण में नदियों के साफ़, स्वच्छ पानी की कल-कल करती हुयी मधुर आवाज आ रही थी, संगम के पानी में जैसे ही नहाने के लिए पैर रखा तो पानी बहुत ठण्डा था । पानी ज्यादा ठण्डा होने के कारण मैंने तो नहाने का विचार त्याग दिया परन्तु उसी ठण्डे पानी में भारद्वाज जी ने काफी देर तक नहाया, तब तक मैं वहीं बैठ कर उस सुरम्य घाटी का दृश्यावलोकन करता रहा ।
भारद्वाज जी के संगम में नहाने के बाद हम लोग वापस होटल आ गए । होटल में आने के बाद मैंने व प्रदीप ड्राईवर ने अपने कमरे के स्नानागार में गीजर के गर्म पानी में नहाया । नहाने के बाद सभी लोग नीचे होटल के रेस्तरां में गए और चाय के साथ भरपेट आलू के परांठे खाए । होटल के कर्मी स्थानीय थे, सो उनसे चोपता के बारे जानकारी करने लगे, तो होटल कर्मियों ने बताया कि.…
"चोपता के रास्ते में बर्फ मिल सकती है, हो सकता है कि आपकी कार चोपता तक न जा पाये।"
लेकिन मैंने कहा कि.…
"बर्फ तो जनवरी में पड़ती है फिर भी यदि रास्ते में बर्फ होगी तो प्रशासन द्वारा स्थानीय निवासियों के आने-जाने के लिए रास्ता तो खोला ही गया होगा और चोपता तो एक प्रसिद्ध पर्यटक स्थल है, वहां तो सैलानी हर समय आते जाते रहते हैं, इसलिए रास्ता बंद नहीं होगा ।"
नाश्ता करने के उपरान्त हम लोगों ने कमरे में जाकर अपने कपड़े आदि बैग में रखे और होटल का भुगतान कर चोपता के लिए सुबह १० बजे निकल पड़े । परन्तु मन में शंका उत्पन्न हो गयी की चोपता ३६०० मीटर की ऊंचाई पर है ऐसा न हो की वास्तव में रस्ते में बर्फ मिले । चोपता एक अलग-थलग मार्ग "ऊखीमठ-गोपेश्वर" पर स्थित है, हो सकता है कि वहां प्रशासन रास्ता बंद होने को लेकर ध्यान न देता हो, जिस कारण वहां रास्तों पर अब भी बर्फ जमी हो । दूसरा कारण यह भी था की पहाड़ों पर अब भी ठण्ड में कोई कमी नहीं आयी थी ।
अब फोटो की बारी..........
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रुद्रप्रयाग संगम पर राजपूत जी |
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संगम स्नान को जाते भरद्वाज जी |
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स्नानोपरांत |
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रुद्रप्रयाग संगम पर राजपूत जी एवं भरद्वाज जी |
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विराजमान भरद्वाज जी |
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घण्टा बजाते हुए |
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पानी का तेज बहाव |
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ड्राईवर प्रदीप |
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रुद्रप्रयाग संगम |
इस यात्रा वृत्तांत के लेखों की सूची
- चोपता : एक अधूरी यात्रा
- रुद्रप्रयाग
- दुगलबिट्टा
1 टिप्पणी:
सुन्दर
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